सामाजिक

कृतज्ञता की शक्ति

हम सभी जानतें हैं कि कृतज्ञता शब्द का सीधा अर्थ है उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करते रहना जिनसे हमें जीवन में कुछ भी प्राप्त होता है। वैसे तो हर ऐक के जीवन में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो कि उसके जीवन को प्रभावित करते हैं, अच्छा बनाते हैं व उंचा उठाते हैं व कई बार उसे कठिनाई कि परिस्थति में बाहर निकालनें में सहायक होते हैं, उनके प्रति कृतज्ञ रहना हमारा धर्म है, परन्तु वेदों के अनुसार जिन तीन का हर मनुश्य को हर समय कृतज्ञ रहना चाहिये वे हैं— सृष्टि का रचयिता व सबका पालनहार ईश्वर, दूसरा, माता पिता जो कि हमे जन्म देकर पालन पोषण करते हैं व तीसरा, हमें जीवन का रास्ता दीखाने वाला गुरू।

इनमें सबसे पहले ईश्वर के प्रति धन्यवादी व कृतज्ञ रहने के लिए कहा गया है। एक महान लेखक का कहना है कि जब हम सृष्टि के रचयिता व सबके पालनहार ईश्वर के कृतज्ञ हो जाते हैं तो स्वभाविक तौर पर सब के कृतज्ञ हो जाते हैं क्योंकि बाकी सब कृपा के पात्र जैसे कि माता पिता, गुरू, मित्र, अच्छा जीवन साथी, अच्छी संतान इत्यादी भी प्रभुु की असीम कृपा से मिलते हैं। अर्थात कृतज्ञता का अर्थ यह हुआ, ‘‘प्रभु व उसकी असीम कृपा से प्राप्त वस्तुओं के प्रति सन्तोश व आभार।‘‘

कृतज्ञता में अदभुत शक्ति है यही नहीं जो व्यक्ति कृतज्ञता की भावना से जीवन जीता है उसे हर समय अदभुत आनन्द की प्राप्ति होती है। जहां कृतज्ञता की क्रिया आनन्दमय है प्रक्रिया उस से भी कहीं अधिक आनन्दमय व सुख देने वाली है। जो व्यक्ति कृतज्ञता के आनन्द को एक बार भोग लेता है धन्यवाद करना उसकी आदत बन जाती है व जीवन शैली बन जाती है। वह वर्शा की बून्दे पड़ते देखे या फिर सूर्य को उदय होते देखे, एकदम नतमस्तक हो कर ईश्वर का धन्यवाद करता है। यही नहीं भीड़ वाले स्थान पर बैठने का स्थान मिल जाये तब भी वह ईश्वर का धन्यवाद करता है।

एक बहुत सफल व्यक्ति का कहना है कि जीवन में उसने जो भी प्राप्त किया वह कृतज्ञता को अपने जीवन की शैली बना कर किया। उसका यहां तक कहना है कि अगर आप सफल जीवन के रहस्य ढूंढ रहें हैं तो सब से पहले कृतज्ञता को अपने जीवन की शैली बनाकर देखें। यही नहीं उसका मानना है कि अगर आप अपने पास माज़ूद चीजों के बारे में कृतज्ञ नहीं तो आपके पास ज्यादा चीजें आना असम्भव है। क्योंकि आप कृतघ्नता;जिसने हमारे साथ अच्छा किया हो उसका आभारी न होना की अवस्था में होते हैं तो जो आपके विचार व भावनायें होती हैं वे सभी नकारात्मक होते हैं जैसे कि असंतुष्टि, ईर्ष्या आदि, इन भावनाओं के साथ और चीजें पाना असम्भव है।

दुनिया के महानतम वैज्ञानिक आईस्टीन की जब भी कोई प्रशंसा करता था तो वह बहुत विनम्र भाव से उन से पहले हुये वैज्ञानिकों का धन्यवाद करते जिनके किये हुये काम को आधार बना कर वह आगे बढ़ सके। यह है कृतज्ञता।

आप की कृतज्ञता की क्रिया जहां एक और दूसरे को सुख देती है वही आप को उस की नज़्ार में उंचा भी उठा देती हैं मुझे याद आती है 2004 में मै जब अपने पति के साथ पाकिस्तान यात्रा के दौरान लाहौर के अनारकली बाज़ार मे घूम रही थी तो वहां हमने अंग्रेजी मे एक बोर्ड पर लिखा देखा ‘धर्मा मार्केट’। धर्मा क्योकि संस्कृत हिन्दी शब्द है जानने की इच्छा हुई। वहां के दुकानदारों से प्रश्न किया कि मार्केट का नाम धर्मा क्यांे है तो जो उन्होने बताया वह दिल को खुश करने वाला था उनमें से सबसे बुजुर्ग ने बताया कि जहां यह मार्केट है वहां पहले धर्म चन्द सेठ की हवेली होती थी। सेठ बहुत धर्म कर्म वाले थे दान पुण्य करते थे सब से प्यार कारते थे। जब देश का बटवारा हुआ तो वह हिन्दुस्तान चले गये। हमने कुछ समय बाद उस हवेली को मार्केट मे बदल दिया। फिर प्रश्न उठा कि नाम क्या रखें। तो सभी ने कहा कि जिस सेठ की वजह से हमें यह दुकानें मिली नाम उसी के नाम पर होना चाहिये व उस मार्केट का नाम धर्मा मार्केेट रख दिया,। इस उदाहरण में देखने वाली बात यह है कि उन लाहोर वालों के कृतज्ञता पूर्ण कार्य ने जहां हमें आपार सुख दिया वहीं उनके प्रति हमारे दिल में आदर की भावना भी भर दी। यह है कृतज्ञता की शक्ति।

कृतज्ञता की अनुभूती का सब से सुन्दर परिक्षा हम अपने घर में ही कर सकते हैं। अपने माता पिता को जब यह कहेगें कि हम ने जो भी पाया है वह आपकी कृपा व आर्शीवाद से पाया है तो जो उनके चेहरे पर खुशी होती है वह उन्हे दुंनिया की और कोई चीज नहीे दे सकती। यही नही आपके घर का महौल ही बहुत सुखद हो जाता है। इस के विपरीत जहां कृतघ्नता का वातावरण बन जाता है वहां क्लेश ही क्लेश रहता है।

अभी हाल में कृतज्ञता का एक सुन्दर उदाहरण तब मिला जब आर्य स्कूल नवांशहर, पंजाब में 1920-30 में शिक्षा प्राप्त करने वाले पाकिस्तान के जस्टिस मोहम्द सिदकी के कृतज्ञ मुसलमान परिवार ने इस विद्यालय में एक बड़ा हाल बनाकर अपना इस आर्य स्कूल के प्रति अपना ऋण अदा किया। जस्टिस मोहम्द सिदकी के कृतज्ञता की भावना उनके इन शब्दों से जो कि उनके पुत्र जस्टिस खलिल उल रहमान ने बयान किये से झलकती हैै—-‘‘ मेरे पिता जी को अपने इस विद्यालय की बहुत याद आती थी। हमसे कहते थे–अगर आर्य समाजी यह स्कूल न खोलते तो न तो मैं पढ़ पाता और न ही जज बनता‘‘ इस सुन्दर कार्य का मूल्यांकन आप तभी कर सकते हैं जब खुद से यह प्रश्न करें कि क्या आप अगर जस्टिस मोहम्द सिदकी के स्थान पर होते तो ऐसा कर पाते?

यह घटना इस बात को भी सिद्ध करती है कि कृतज्ञता एक ऐसा मानवीय गुण है जिस का धर्म,स्थान से कोई सम्बन्ध नहीं । जब यह स्पष्ट है कि कृतज्ञता एक ऐसा मानवीय गुण है जिससे अदभुत आनन्द की प्राप्ति होती है, तो क्यों न इसे जीवन की शैली बनाया जाये।

— नीला सूद

नीला सूद

आर्यसमाज से प्रभावित विचारधारा। लिखने-पढ़ने का शौक है।