तब रोज ही मनती दीवाली
जब साथ में होती घरवाली,
तब रोज ही मनती दीवाली।
जब पास में अपने होती है।
वह सपने नए नित बोती है।
हमें जीवंत बनाए रखने को,
वह अपने आपको खोती है।
जब प्रेम में होती मतवाली।
तब रोज ही मनती दीवाली।
जादू उसके कर में है।
खुशी छिपी हर वर में है।
समस्याओं से घिरी हुई,
पर समाधान भी सर में है।
दूध की देती जब प्याली।
तब रोज ही मनती दीवाली।
कभी नहीं रहती खाली।
कभी तवा, कभी थाली।
संतुष्ट नहीं कभी होती,
पर नहीं कभी देती गाली।
जब हमें सजाती बन माली।
तब रोज ही मनती दीवाली।
फूल नहीं, वह फुलवारी।
कभी नहीं वह है हारी।
समर्पण और त्याग की देवी,
हर पल लगे हमें प्यारी।
जब सजा के लाती है थाली।
तब रोज ही मनती दीवाली।
साक्षात लक्ष्मी, नहीं है मूरत।
दुनिया में सबसे खुबसूरत।
साथ में जब वह होती है,
नहीं किसी की हमें जरूरत।
जब आती है छोटी साली।
तब रोज ही मनती दीवाली।
जीवन मधु है वही पिलाती।
मरते हुए भी हमें जिलाती।
हमने भले ही हो ठुकराया,
नहीं कभी भी वह ठुकराती।
जब उसके चेहरे पर लाली।
तब रोज ही मनती दीवाली।
सखी, सहेली, वह आली।
कष्टों के हित है काली।
चाह नहीं, चाहत नहीं,
मुस्कान उसकी, सजी थाली।
अधर नयन हों, रस प्याली।
साक्षात, वही, है दीवाली।
जब साथ में होती घरवाली।
तब रोज ही मनती दीवाली।