सरकार से प्रश्न-प्रतिप्रश्न
एक मित्र धर्मेंद्र कुमार ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से प्रश्न किया है, जिसे हूबहू यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ….
”स्व. सुनंदा पुष्कर कांड में श्रीमान शशि थरूर का आपके शासनकाल में कुछ भी नहीं बिगड़ा, श्री रॉबर्ट वाड्रा DLF जमीन घोटाले में एक दिन के लिए भी जेल नहीं गया, कॉमनवेल्थ घोटाले में श्री सुरेश कलमाडी अंदर था, बाहर आ गया । श्री भनोट भी बाहर आ चुका है, तो श्रीमती शीला दीक्षित गिरफ्तार नहीं हुई । कोयला घोटाले में अब कोई अंदर नहीं है, क्योंकि 2जी स्कैम में सारे लोग छूट चुके हैं । शारदा चिट फंड स्कैम का मुख्य आरोपी श्री मुकुल राय अब बीजेपी का सम्मानित नेता है, जो पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री पद का दावेदार हो सकता है! तो श्रीमती ममता बनर्जी और श्री चंद्रबाबू नायडु पर कोई जादू नहीं चला !”
मेरे तरफ से उत्तर-
“भाई, यही तो लोकतंत्र की खुशबू है । वहीं, राजनीति में न चिरस्थायी दोस्त होते हैं, न ही दुश्मन ! बाद बाकी मामले अदालत के अधीन विचाराधीन है, क्यों?
अब सरकार से मेरे प्रश्न-
बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को ‘वो’ शिक्षक नहीं मान रहे हैं, केवल संसार को दिखाने के लिए कामचलताऊ निकाय शिक्षक मान रहे हैं तथा सरकारी अधिकारियों से हरतरह के जाँच करवाकर ‘नियमावली’ का मुखौती हवाला दे रहे हैं । तभी तो माननीय पटना उच्च न्यायालय के अपीलीय पीठ के फैसले:-
(1.) कोई सरकार चपरासी से कम वेतन एक शिक्षक को कैसे दे सकते हैं, जबकि नियोजित शिक्षकों के प्रभारी प्रधानाध्यापक होने की स्थिति में उनके हस्ताक्षर से चपरासी को वेतन मिलता है !,
(2.) ‘समान काम का समान वेतन’ में नियोजित शिक्षकों की जीत को यह सरकार इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाए, क्योंकि 6 नवंबर 2017 को सरकार के अंदर की साजिश व नियोजितों के विरुद्ध वार्त्तालाप के कारण ‘बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ’ को माननीय उच्चतम न्यायालय में ‘कैवियट’ दाखिल करना पड़ा !
सरकार से बाहर रहकर नियोजितों के प्रति गुणगान करने वाले जब सरकार में शामिल हो गए, तब उनके श्रीमुख से चिल्ल-पों तक नहीं निकल रहे….. ऐसा क्यों ?