लघुकथा

लघुकथा – हैप्पी दिवाली

“इस बार हमलोगों ने शांति और सुकून के साथ दिवाली मनाई।आप चिंता नहीं करना मम्मी।” सेना के जवान ने फोन पर अपनी मांँ को कहा।
“बहुत खुशी मिली, बेटा। दिन रात मन किसी आशंका से घिरा रहता है। सरहद पर तुम्हारे पापा की शहादत आज भी कहाँ भूल पाई हूँ।” माँ ने अपने बेटे को जो सूबेदार के पद पर बहाल है, कहा।
” माँ! इस बार सरहद पर न गोलियाँ चली और न बम फूटे। न्यायालय के आदेश का सम्मान भी किया गया। लोगों ने पटाखे भी नहीं फोड़े।”
“अरे वाह!”
“हाँ माँ, हमने मोमबत्तियाँ जलाई और सरहद के उसपार के जवानों के बीच  मिठाइयाँ भी बाँटी। बहुत खुशी हुई जब हैप्पी दिवाली कहकर पड़ोसी देश के जवानों ने हमारी खुशी में साथ दिया।” सूबेदार ने बताया।
“काश।सत्ता के मद में राजनीतिक स्वार्थ के लिए नेताओं ने नफरत और युद्ध के बीज नहीं बोए होते तो  हजारों के सुहाग नहीं उजड़ते, पिता की साया से हजारों महरूम नहीं होते,पुत्र शोक में माँ बाप की आँखें पथरा नहीं गई होती, भाई के शहीद हो जाने के कारण बहनों का भैया दूज अधूरा नहीं रह जाता।” सूबेदार की माँ मन ही मन सोचने लगी।
— निर्मल कुमार डे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]