संदेश ए धरा
अनपढ़ों के बीच क्या यह पढ़ने लगी तुम,
पढ़े लिखे का ज्ञान कहां गढ़ने लगी तुम।
किसान की पुकार है अजीब चीत्कार है,
मोबाइल का कीड़ा सबको कर रहा बीमार है।
बस किया आगाह अब तो सड़ने लगी तुम,
अनपढ़ों के——
अव भी चेत जाओ,प्रकृतिपे न करो यूं वार,
जर्रा जर्रा कर रहा तुमसे अब यही गुहार।
कैसी फेंटेसी की पूजा करने लगे तुम,
अनपढो के—–
कुछ तो हां शरम करो एक तरफ धरम करो,
मर रही धरा इसे संवारो ये करम करो।
प्लास्टिको से इस धरा को भरने लगे तुम,
अनपढों के——-
हाथ को बढ़ा के अब एक पौधा दो लगा,
प्रकृति का संतुलन फिर न होगा डगमगा।
हरि धरा मरुस्थल न बनने दोगे तुम,
अनपढों के——-
— अनीता विश्वकर्मा