गीतिका/ग़ज़ल

चरागे उल्फ़त जला रहा था

वफ़ा वो उनसे निभा रहा था |
चरागे उल्फत जला रहा था |

मुहब्बतों का चमन खिला कर
वो दिल का दामन सजा रहा था |

बसा था दिल की जो धड़कनों में-
वो गीत हँस गुनगुना रहा था |

करार दिल का तुम्ही हो मेरा –
वो मुस्कराकर बता रहा था |

गुलों के किस्से सुना सुना के-
वो प्यार अपना लुटा रहा था |

सुनाई दी जब दिलों की धड़कन-
वो बेवजह मुस्कुरा रहा था |

‘मृदुल’महकता हुआ समां भी-
हंसीन लम्हे चुरा रहा था |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016