राबता निकल आए
दिलों दिलों में जहाँ राबता निकल आये|
पत्थरों में जो बसा वो खुदा निकल आये |
तलाशते थे जिसे हम तमाम लोगों मे –
मेरी तलाश में वो खुद कहाँ निकल आये |
वफा की राह में पाँवो में कितने खार चुभे –
ज़रा देखो जखम कोई हरा निकल आये |
ज़ुबा पे इश्क का हर लफ्ज़ दुआ जैसा है-
दूधिया रंग से वह बुलबुला निकल आये |
नज़र में जीत की उम्मीद रहा करती है –
मंजिले दूर नही रास्ता निकल आये |
मिटें जहां से नफरत के रंग अब सारे
“मृदुल” उमंग भरी जिंदगी निकल आए।
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल ‘