आज भी देवदूत हैं
उन दिनों मेरी नियुक्ति तंज़ानिया में काफी रिसर्च इन्स्टीट्यूट ल्यामुंगो में थी। ल्यामुंगो से अरूशा 35 मील दूर था। हमारी बेटी शुचि अरूशा स्कूल में पढ़ती थी।वह यहां बोर्डिंग होस्टल में रहती थी और हम उसे शनिवार शाम को घर ले आया करते थे और सोमवार को स्कूल समय से पहले ही पहुंचा देते थे। इस बार हम सभी शुचि को अरूशा स्कूल छोड़ने के बाद दार-ए-सलाम के लिए चले थे। हम अपनी ही गाड़ी से जा रहे थे। इस यात्रा में 7,8 घण्टे लगते हैं।। बच्चे हमेशा पिछली सीट पर और पत्नी आगे की सीट पर और मैं स्वयं ही गाड़ी चलाता था।
लगभग आधी यात्रा के बाद कोरोगवे में एक होटल की पार्किंग में खाना खाने के लिए रुके। बहुत लोग यहां खाना या अल्पाहार लेते हैं। यहां थोड़ा रैस्ट मिल जाता है। खाना हम घर से ही लाते थे क्योंकि इस मार्ग में शाकाहारी खाना नहीं मिलता था और जब भूख लगे , सुरक्षित स्थान पर गाड़ी रोक कर खाना खा लिया करते थे। साधारणतया यह ऐसा स्थान होता था जहां कुछ दुकानें या पैट्रोल पम्प हो। मार्ग में वन्य पशु सड़क के आर-पार आते जाते रहते थे, उनके लिए आप को गाड़ी दूरी पर ही रोकनी होती थी। कभी कभी स्थानीय निवासी गाड़ी रुकी देख कर आपसे धन या कुछ और मांगने के बहाने आपसे दुर्व्यवहार करने के लिए तैयार रहते थे।
खाना खाने के लगभग आधा घण्टा बाद 2,3 बजे के मध्य ,हम अभी कुछ ही दूर गये होंगे कि हमारी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। पता नहीं चला कि वह कैसे सामने मिट्टी के ढेर से टकराई और वापस मुड़ कर सड़क के किनारे के पास मिट्टी के ढेर के साथ खड़ी हो गई।इस मार्ग पर टैंकर तथा बसें और छोटे वाहन चलते रहते हैं इसलिए आने जाने वाली गाड़ियों का तांता लगा रहता है।
जैसे ही अपनी गाड़ी टकरा कर खड़ी हुई, सामने से आ रही सफ़ेद रंग की गाड़ी रुकी। चालक और एक व्यक्ति (अफ़्रीकन) हमारे पास आए, गाड़ी के आगे के भाग को देख कर मुझे बाहर निकाला ।चालक वाली ओर पहाड़ी की तरफ थी और वहां 2 फुट गहरी नाली थी, ऊपर खींच कर बाहर निकाला। दूसरी ओर खुला स्थान था।बेटा और पत्नी बाहर सड़क पर आगये। सामने वाली गाड़ी से उतरे व्यक्ति ने मुझे पूछा ,”आप ठीक हैं और कहां जा रहे हैं ?” मैंने कहा, “ठीक हूं और हम लोग दार-ए-सलाम जा रहे हैं।” और उस व्यक्ति ने कहा,” गाड़ी का मुंह अरुशा की ओर है आप कह रहे हैं कि हम दार-ए-सलाम जा रहे हैं।” साथ ही गाड़ी की ओर संकेत किया। मुझे पता ही नहीं चला कि गाड़ी कब टकराई और मुड़ी।
अब पता चला कि हमारी गाड़ी ने आधा चक्कर काट कर वापस अरुशा की ओर मुंह कर लिया था। उसका अगला भाग पहाड़ वाली ओर था, बोनैट के कारण अधिक हानि नहीं हुई थी।बोनैट ऊपर उठा हुआ था। इसलिए लगा कि वह पिचक गया है। उस व्यक्ति को बताया कि हम लोग अरुशा से आ रहे हैं और मैं ल्यामुंगो में भारत से वहां प्रतिनियुक्ति पर हूं। उसने कहा अच्छा हुआ कि आगे पीछे से कोई गाड़ी नहीं आई, अन्यथा टक्कर हो जाती। यह गाड़ी इस समय चलाने योग्य नहीं है और इसे यहां से ले जाने का प्रबन्ध मैं कर दूंगा। यहां से थोड़ा आगे छोटा हस्पताल है, वहां तक आप सब मेरे साथ चलिए और अपने चालक को सामान लाने को कहा। हम लोग उसके साथ हो लिए। मार्ग में मैंने उसे अपना पूरा परिचय दिया। उसने पूछा ” मैं अरूशा ही जा रहा हूं, यदि किसी व्यक्ति को संदेश देना हो तो बताइए।” मैंने उसे मोशी में एक मित्र ए सी चोपड़ा का पता बता दिया और उसे कहना कि हम उनके यहां परसों को नहीं आ सकेंगे।
वह व्यक्ति शिष्टाचारी, उच्च अधिकारी और संभ्रांत लगा, उसके गले में सोने की चेन थी। उसने अपना परिचय नहीं दिया।
स्वास्थ्य केन्द्र के पास उस व्यक्ति ने अपनी गाड़ी रुकवाई और वहां से हमारी गाड़ी को उठा कर यहां लाने को कहा और कुछ दिन बाद दार-ए-सलाम से हम उठवा लेंगे। उसने वहां से हमारी ड्रैसिंग करवाई और बस स्टाप पर छोड़ कर जाने लगा तो हमने उसका धन्यवाद किया। ऐसे देवदूत होते हैं, अपना नाम तक नहीं बताया और पूरा प्रबन्ध कर गया। उस समय शाम के चार बजे गए थे।कुछ ही देर में बस आई और हमें वहां खड़े देख रुक गयी ।कंडक्टर ने बस में चढ़ने को कहा और हमारे पास एक ही बैग था। हमें आगे बिठाया और हमें दो टिकट दार-ए-सलाम के दिए। रास्ते में बस में ही रेडियो समाचार में अपने बारे में सुना कि एक परिवार जो अरुशा से दार-ए-सलाम आ रहा था । गाड़ी नं TDL 261 की दुर्घटना शाम 3 बजे के लगभग हुई है। उसमें सभी सुरक्षित हैं और बस से दार-ए-सलाम आ रहें हैं। अब आप अनुमान लगाइए वह व्यक्ति कितना नेकदिल और सहायक था। हमारे लिए तो वह भगवान का दूत था। इसलिए उसका चेहरा आज भी स्मरण है। भगवान उसका भला करे।