चौपाई : ब्रह्मा जी का ताप
बैठे थे अनमने विधाता ।
जीव मात्र के जीवन- दाता।।
वीणा की झनकार बजाते।
हरी – नाम की टेर सुनाते।।
नारद मुनि विधि लोक पधारे।
वीणा को निज अंक सँभारे।।
क्यों हैं चिंतित पिता हमारे।
क्या चिंता के कारण सारे।।
‘चिंता यमदूतों की भारी।’
बोले ब्रह्मा दशा विचारी।।
‘थे यमदूत दिवंगत नेता।
क्षण भर में जीवन हर लेता।।
लगता उनमें दया आ रही ।
ममता करुणा – धार आ बही।।
मृत्युलोक के पापी सारे।
यम के दूत न सब बेचारे।।
शोषक चूषक जीवन – हंता ।
निर्मम, क्रूर, पिशाच अनंता।।
रखते यही अर्हता पापी।
बनते यम के दूत ‘सु’- शापी।।
नारद तुम यमलोक पधारो।
करना जाँच न हिम्मत हारो।।
धर्मराज आख्या दें सारी।
ताकि मिटे उर पीर हमारी।।
नारद चले कहा, ‘ जो आज्ञा।’
कैसे करते वचन – अवज्ञा!!
सात दिवस भी बीत गए हैं।
जगत – पिता भयभीत भए हैं।।
धर्मराज की आख्या पाई।
नारद के उर खुशी समाई।।
नभ – पथ बढ़ते – पढ़ते जाते।
आख्या पढ़ फूले न समाते।।
“नेता जीवन – हंता सारे।
शोषक मिलावटी हत्यारे।
परधनहर्ता , पापी, दानव।
जो थे केवल तन के मानव।।
नर पिशाच, निर्मम , अधिकारी।
मरे भोग भीषण बीमारी।।
सभी लुटेरे या व्यभिचारी।
राजनीति के क्रूर पुजारी।।
यमदूतत्व पदवियाँ पाते।
क्षण में जीवन हर के लाते।।
वही पात्र हैं यम- कर्मों के।
तृण भर शेष न हीं धर्मों के।।”
दिखा तभी विधिलोक सुपावन।
नारद अति प्रसन्न मन भावन।।
‘शुभम’ सँदेशा तुरत सुनाया।
ब्रह्मा जी का ताप नसाया।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’