प्रेम जग जाता है
कोयल की कुहू-कुहू,
मयूरों का नर्तन
गायों का हुम्भारन
बैलों की घण्टियों की
घन-घन जब पुलक से
प्रफुल्लित सी
दिखती है अवनि
सरसराता पवन जब
देह को कँपाता है मेरा
प्रेम जग जाता है
उन्मत्त युवावस्था लिये
जब फसल लहलहाती है
कृषक बाला ऊँचे
घाँघरे और चोली में
हलधर को कलेऊ
देने आती है ऊँची मेड़ पर
बैठ किसनवा
जब विरहा सुनाता है
मेरा प्रेम जग जाता है।
किसानों के धूल धुसरित
बच्चे अपने भोलेपन में
कान्हा के प्रतिरूप से
लगते हैं जब गुड़ की डेली
मक्खन के संग खाकर
राजसी भोग समझते हैं
फटेहाल वस्त्रों में
शंहशाह लगते हैं
हर बच्चा यूं ही
ऊधम मचाता है
मेरा प्रेम जग जाता है।
— डॉ. प्रवीणा दीक्षित