असहाय नहीं है
कोमल है असहाय नहीं है
शक्ति का संधान है तू
आत्मरक्षिता अटल शिखर सी
स्वयंसिद्धि संज्ञान है तू
बढ़ते जाना तू मत रुकना
दृष्टि हो गंतव्य पर
तू दुर्गा काली से प्रेरित
भाव रहे मंतव्य पर
ध्वज रोहण सा उन्नत मस्तक
शक्ति का सम्मान है तू
आत्मरक्षिता अटल शिखर सी
स्वयंसिद्धि संज्ञान है तू
बनना तुझे स्वावलंबी है
नहीं किसी से भी तू कम
याद रहे लक्ष्मीबाई की
तुझमें भी तो है वो दम
देख आत्मबल की ज्योति में
खुद अपना स्वाभिमान है तू
आत्मरक्षिता अटल शिखर सी
स्वयंसिद्धि संज्ञान है तू
लिख अपने गौरव की गाथा
अब न होना अपमानित
हाथ बढ़े जो आँचल छूने
हो जाये वो बाधित
दुष्ट दलन की रीत-नीत में
अंतर्मन का ज्ञान है तू
आत्मरक्षिता अटल शिखर सी
स्वयंसिद्धि संज्ञान है तू
तू शक्तिसेना का मान
रखना सदा आत्मसम्मान
तू सृजनात्मकता सृष्टि की
ईश्वर का तू है वरदान
तुझमें है दुर्गांश सम्मिलित
“स्वाती” का अभिमान है तू
आत्मरक्षिता अटल शिखर सी
स्वयंसिद्धि संज्ञान है तू
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”