क़ायनात
तुम गुलसितां से आये हो खिज़ां की बात लेकर
गुलों से लिपटी ओस पर पत्थर की घात लेकर
दिन हिज्र वाले हमने मर-मर के काटे सारे
फिर जाकर आये हैं आप वस्ल की रात लेकर
सारी हयात गुज़री है जब प्यासी ही हमारी
तब आप आये हैं जनाब आब-ए-हयात लेकर
लबों पे हमने रक्खे सदा गीत आप के ही
आप क्यूँ हमसे मिलते हैं उदू की ज़ात लेकर
है नाम ज़िन्दगी का चलते ही चले जाना
तो आओ चलें हम भी फिर क़ायनात लेकर
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”