वर्जिनिटी टेस्ट आधुनिक युग में बहुतायत में प्रयुक्त होने वाला शब्द है। इस शब्द का हिंदी रूपांतरण “कौमार्य परीक्षण” होता है। वर्जिन शब्द का प्रयोग प्रायः एक लड़की की पवित्रता और उसके कौमार्य व्रत का पालन करने के आँकलन हेतु किया जाता है। आज हमारे समाज में जब लड़कियाँ लड़कों से कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं… कुटुंब का आर्थिक भार वहन करने में बराबर की भूमिका निभा रही हैं… समाज को गति प्रदान कर रहीं हैं। वहाँ इस तरह के प्रश्न उसके समक्ष रखने बेईमानी है।
यदि कोई महिला देर रात तक जागकर कार्यस्थल पर तैनात है,तो उसके चरित्र पर उंगलियाँ उठाई जाती हैं… उसके किरदार को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। जबकि यदि एक पुरूष वही काम करता है तो उसे कर्मठ,व्यस्त,बेचारा,मजबूर आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। आखिर क्यों? आख़िर क्यों समाज में यह दोगले मापदंड हैं… दोहरी मानसिकता है…?
आज भी हमारे देश के कुछ ऐसे राज्य हैं जहाँ विवाह के उपरांत एक लड़की को वर्जिनिटी टेस्ट जैसी अपमानजनक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस परीक्षण का समय आधे घण्टे का रखा जाता है। सुहाग कक्ष में लड़की को सफेद चादर बिछाकर उसके कौमार्य का परीक्षण पति द्वारा किया जाता है। यदि लड़की परीक्षण में उत्तीर्ण होती है तो आधे घण्टे बाद सभी कुटुम्बजनों को यह शुभ समाचार दिया जाता है अन्यथा लड़की को अपमानित करके उसके माता पिता को यह कहकर सौंप दिया जाता है कि “आपकी बेटी कुँवारी नहीं है”। यह सरासर गलत और अन्यायपूर्ण है।
हम सभी पढ़े लिखे हैं, और हम इस तथ्य से भली-भाँति अवगत हैं कि आज लड़कियाँ शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय रहतीं हैं। कई ऐसे भागदौड़ भरे काम करतीं हैं, जिससे उनकी कौमार्य झिल्ली जिसे हाइमन कहा जाता है फट जाती है। जैसे व्यायाम , डाँस, खेलकूद, दौड़ आदि क्रियाकलाप। अब यदि फिर भी किसी का पति बेवजह अपनी पत्नी के किरदार पर मात्र इसलिए संदेह करें कि प्रथम समागम में वह समाज के दकियानूसी मापदंडों पर खरी नहीं उतर पाई…या अपनी पवित्रता का साक्ष्य पति को प्रथम रात्रि में नहीं दे पाई,तो यह बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है।
— प्रीति चौधरी “मनोरमा”