लघुकथा

परवाह

केतकी की तबीयत आज कुछ बिगड़ी हुई है। सुबह से ही उसके हाथों में दर्द है फिर भी वह काम किए जा रही। न उसने अपने दर्द का जिक्र किसी से किया न किसी ने पूछा सभी अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त हैं। बचपन से वह ऐसी ही है सभी की देखभाल और सेवा जी-जान से करती मगर उसकी कोई परवाह नहीं करता। बचपन में मां के गुजर जाने के बाद उसने किसी से कुछ कहना ही छोड़ दिया है। शादी के बाद जब से ससुराल आई है यहां भी उसका वही हाल है, सुबह से शाम तक घर के कामों में लगी रहती है भाग-भागकर सभी का काम करती। मगर कभी वो बीमार पड़ जाए कोई उसका हाल नहीं पूछता।
पति बच्चे सभी का यही हाल है। इन सभी के लिए केतकी एक सेवादार है, सभी का सेवा करना उसका काम है। उसकी परवाह करना किसी की जिम्मेदारी में नहीं आता है।

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P