गज़ल
आईना हाथ में जब भी कभी अपने उठाना तुम,
पहले देख लेना खुद फिर मुझको दिखाना तुम,
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हजारों बार सोच लेना वादा करने से पहले,
किसी से जब करो तो जान देकर भी निभाना तुम,
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तड़प कर आह भरने के लिए मजबूर हो जाए,
किसी मासूम दिल को इस तरह से ना सताना तुम,
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यहाँ सब लोग मुट्ठी में नमक लेकर ही बैठे हैं,
ज़ख्म सीने पे चाहे हों किसी को ना दिखाना तुम,
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मुसाफिर हूँ चला जाऊँगा थोड़ी देर रूककर मैं,
चाहे समझो मुझे अपना चाहे समझो बेगाना तुम,
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चाहते हो अगर दुश्मन तुम्हारा ना बने कोई,
किसी को दोस्त अपना ज़िंदगी में ना बनाना तुम,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।