तारों की बारात
”ममी, मैं पंद्रह अगस्त को चांद वाली पतंग उड़ाऊंगा.” सोते समय धैर्य ने ममी से कहा.
”अच्छा बेटा जैसी चाहे वैसी पतंग उड़ाना, पर यह चांद वाली पतंग उड़ाने का विचार तेरे मन में कैसे आया?”
”देखो न ममी, चांद भी अकेला है और मैं भी अकेला!”
”बेटा, न तो चांद अकेला है और न तुम! चांद के साथ तारे हैं और तुम्हारे साथ हम. ऐसी बातें क्यों सोचते हो?” ममी खुद विचारों में खो गईं.
”सच तो कह रहा है धैर्य. सुबह उठते ही हम उसे स्कूल भेजकर खुद ऑफिस चले जाते हैं, धैर्य तो दोपहर में घर आकर अकेला ही खाता-पीता है, हमें तो ऑफिस से आते-आते सात बज जाते हैं.”
”सुनो जी, हमें धैर्य के बारे में कुछ सोचना पड़ेगा!” मां की चिंता मुखर थी.
”क्यों क्या हुआ?”
”धैर्य खुद को अकेला महसूस करता है.” मां ने सारी बात कह सुनाई.
”यह तो वाकई चिंता की बात है.” पापा कुछ सोचने लगे.
”ऐसा करते हैं, हमारे ऑफिस में रात की शिफ्ट होती है. मैं रात की शिफ्ट ले लेता हूं.”
”ऐसे कैसे चलेगा? रात की शिफ्ट से आपके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.” उनकी सोच जारी थी.
”तुम बी.एड. तो हो ही, स्कूल के लिए अप्लाइ कर दो, उसके लिए जब तुम्हारा चयन हो जाएगा, तो मैं फिर दिन की शिफ्ट ले लूंगा. इस तरह धैर्य के अकेलेपन की समस्या दूर हो जाएगी.”
योजना के अनुसार पापा ने रात की शिफ्ट ले ली.
धैर्य ने पंद्रह अगस्त को चांद वाली पतंग तो उड़ाई, लेकिन अब धैर्य को चांद के साथ तारों की बारात दिखाई दे रही थी.