एक पिता की व्यथा
जिसे सुलाया बाँहों में
और पलकों की छाँव में मैं नहीं सोच सकता हूँ
मेरी बिटिया तुझे बिलखता, नहीं देख सकता हूँ।
मेरी गुड़िया, तू गुड़िया के लिए रूठ जाती थी
मचल-मचलकर आसमान को, धरती पर लाती थी
दे तब तुझको नया खिलौना, मैं बहला था लेता
अगर खिलौना होता वह तो, फिर से लाकर देता
बचपन का वह गीत पुराना, अब ना गा सकता हूँ
तेरा प्यारा गुड्डा राजा, अब ना ला सकता हूँ
मेरी बिटिया तुझे बिलखता, नहीं देख सकता हूँ।1।
हूँ लाचार बाप मैं बेटी, कैसे अश्क बहाऊँ?
तुझे सुलाने कंपित सुर से, लोरी कैसे गाऊँ?
जिन आँखों ने तुझे सँवरता, हँसता-गाता देखा
जिन हाथों से जोड़ी मैंने, तेरी जीवन – रेखा
हुआ पराजित आज भाग से,बस तुझको तकता हूँ
पोंछ ना पाऊँ तेरे आँसू, किस्मत पर हँसता हूँ
मेरी बिटिया तुझे बिलखता, नहीं देख सकता हूँ।2।
अंगारों ने राह सजायी, पर तुम ना घबराना
तूफानों की फौज लाँघकर,आगे बढ़ते जाना
बिजली टूटे आसमान से, तुम धीरज ना खोना
हो विकराल काल आगे पर, कभी ना बेबस होना
तेरे सारे दुख लाड़ो मैं, अपने कर सकता हूँ
लेकिन इस पीड़ा के आगे, कुछ ना कर सकता हूँ
मेरी बिटिया तुझे बिलखता, नहीं देख सकता हूँ।3।
— शरद सुनेरी