आजकल अभिनेत्री कंगना रनौत के इस कथन पर बहुत विवाद हो रहा है कि आज़ादी १९४७ में नहीं मिली थी, बल्कि बाद में (२०१४ में) मिली है। यह लगभग वही बात है जो मैं कम से कम पिछले ३५ साल से लगातार कहता और लिखता रहा हूँ।
हमें यह ग़लत बताया गया है कि गाँधी और कांग्रेस ने स्वतंत्रता दिलवायी थी। सत्य यह है कि उन्होंने केवल सत्ता के हस्तांतरण का सौदा किया था क्योंकि अनेक कारणों से अंग्रेज अपने उपनिवेशों को छोड़कर जा रहे थे। १९४७ के आस-पास कई ऐसे देश भी स्वतंत्र हुए थे जहाँ कोई गाँधी था और न कोई कांग्रेस।
अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण कांग्रेस को केवल दो कारणों से किया था- एक, उस समय कांग्रेस सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी थी, और दो, गाँधी और नेहरू दोनों अंग्रेजों के पिट्ठू थे, इससे अंग्रेजों को विश्वास था कि ये दोनों हमारे हितों की रक्षा करते रहेंगे। वैसा ही हुआ भी।
यदि स्वतंत्रता कांग्रेस के किसी पराक्रम के कारण मिली होती, तो कांग्रेस को न तो देश का विभाजन करना पड़ता और न उनकी अपमानजनक शर्तों को मानना पड़ता। कांग्रेस ने स्वतंत्रता के लिए जितने भी आन्दोलन चलाये थे, सब बुरी तरह असफल हुए थे।
कांग्रेस का अन्तिम आन्दोलन १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन था, जो नेतृत्व की अक्षमता के कारण पूर्णत: विफल रहा था। उससे जन जागरण अवश्य हुआ था जो कि हर आन्दोलन से होता ही है, लेकिन स्वतंत्रता के लिए यह पर्याप्त नहीं था। ऐसे आन्दोलन चलाकर तो कांग्रेस अगले सौ वर्षों में भी देश को आज़ाद नहीं करा सकती थी।
अंग्रेजों को जिन कारणों से भारत छोड़कर जाना पड़ा था, उनमें प्रमुख था १९४६ का नौसेना का विद्रोह, जिसे वायु सेना का भी समर्थन प्राप्त था। इस विद्रोह के कारण अंग्रेजों के मन में डर बैठ गया था कि उनका भविष्य यहाँ सुरक्षित नहीं है। इसलिए वे शीघ्र से शीघ्र भारत से चले जाना चाहते थे।
कांग्रेस की दुर्बलता या दोगलेपन की सीमा तो यह थी कि द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को न मानते हुए भी उसने मज़हब के आधार पर देश का विभाजन स्वीकार कर लिया, फिर भी आधे मुसलमानों को भारत में ही रहने दिया, जबकि उनको उसी समय अनिवार्य रूप से पाकिस्तान भेज देना चाहिए था।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल
कार्तिक शु. १४, सं. २०७८ वि. (१८ नवम्बर, २०२१)