ग़ज़ल
प्रभु की महिमा न्यारी है।
शूल – फूल की क्यारी है।।
कभी रात है दिवस कभी,
साँझ , सुबह की बारी है।
आँसू हैं मुस्कान कभी,
पुरुष परुष नम नारी है।
सरिता सागर सलिल बहे,
मधुर कहीं जल खारी है।
सबके गुण अपने – अपने ,
नभ हलका भू भारी है।
कटहल ऊबड़ – खाबड़ है,
ख़रबूज़े पर धारी है।
‘शुभम’ आज पनघट प्यासा,
एक नहीं पनिहारी है।
== डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’