कविता
हसीनों की महफ़िल से चुरा लाया।
दिल में तुझे सदा के लिए बैठाया।।
तुमने भी खुशी-खुशी समर्पित किया।
न घबराई,न ही प्रतिकार कभी किया।।
नहीं कभी मैंने तुम्हें जंजीरों से बांधा।
न तो कभी भी क़फ़स में रक्खा।।
जीवनसाथी बन जीवन्त पर चलते रहे।
संघर्षों को हंस-हंस कर पार करते रहे।।
मुद्दत बाद एक छोटा सा आशियाना बनाया।
रंग-बिरंगे सपनों से उसे सजाया।।
सुखी जीवन पर न जाने नज़र लगी किसकी।
आंधी एक ऐसी आई क्षण भर में आशियाना भसकी।।
विलग कर मुझ से तुम्हें ले मृत्यु ले गया।
रोकना चाहा कर भी मैं नहीं रोक पाया।।
जिस्म तो मेरा मेरे पास है जान ले गया।
ग़म की दरिया में मुझे अचानक गिरा गया।।
— डा. मंजु लता