शहीदों की अमर गाथा : आज युवाओं को देती महान् संदेश*
‘जय हिंद के लिए’ पुस्तक के लेखक डॉ.अग्निदेव ने आजादी के क्रांतिकारी वीर- सपूतों, की कहानी को अपने एक नए अंदाज में लिखकर पुनीत कार्य किया है जो वाकई में प्रशंसनीय ही नहीं बल्कि सम्मानीय है।जो देश की युवा पीढ़ी को एक नई सोच, नई दिशा धारा देती है। पुस्तक में संक्षिप्त में बहुत कुछ कहने की गुंजाइश है।
पुस्तक में आजादी के वीर सपूतों एवं भारत मां के लाल- शहीद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद की जीवन दास्तान को मार्मिक ढंग से तथा बारीकी से लेखक ने अपनी पैनी दृष्टि से पुस्तक में प्रस्तुत कर एक ऐतिहासिक कार्य किया है। जो वाकई में सराहनीय है।
पुस्तक के प्रारंभ में लेखक ने अंग्रेजी कुशासन सत्ता से देश के हालात पर एक नजर में संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत किया है। विदेशी सत्ता की क्रूरता, तानाशाही शासन सत्ता, अत्याचार, शोषण, लूटमार ने इस देश की जनता को निर्ममता से क्षति पहुंचाई। आर्थिक रूप से देश को पंगु बना दिया। तब देश की जनता ने क्रांति का रूप धारण किया। जिसमें किसान, मजदूर, आम व्यक्ति आजादी के आंदोलन में कूद पड़ा। लेखक ने मोटे तौर पर आजादी की चार क्रांति लहरों को दर्शाया है। देश में पहली आजादी की राष्ट्रव्यापी लहर 1905 से 1910 में बंग-भंग के विरोध में शुरू हुई तो राष्ट्रवादी संघर्ष की दूसरी व्यापक लहार 1919 से 1929 के बीच प्रारंभ हुई। तीसरी लहर 1929 में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग के लक्ष्य को लेकर हुई और चौथी क्रांति की लहर 1932 में अंग्रेजों भारत छोड़ो के रूप में हुई। इस प्रकार डॉ.अग्नि देव ने संक्षिप्त में देश की हालात को बयान किया है और चार महान् आजादी के परवानों को लिपिबद्ध किया है।
शहीद भगत सिंह की जीवन गाथा को अपने शब्द-चित्र को तूलिका के माध्यम से लेखक ने भगत सिंह के बाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा युवा अवस्था को प्रस्तुत किया है।
भगत सिंह को बचपन से जन्मजात एवं परिवार से मिले संस्कारों तथा राष्ट्रभक्ति जैसे गुणों ने उन्हें महान बनाया। अपनी शिक्षा-दीक्षा के साथ ही उनके मन मस्तिष्क में भारत माता की रक्षा का बीजारोपण फूट पड़ा था।डॉ. अग्निदेव ने अपनी पुस्तक ‘जय हिंद के लिए’ में लिखा है-” भगत सिंह का स्वभाव बचपन से ऐसा मधुर व मन-मोहक था कि वे हर किसी को अपना दोस्त बना लेते थे व देश सेवा की बातें करते।पिता सरदार किशन सिंह खुश होते किंतु मां विद्यावती अपने दो देवरों को राष्ट्र के लिए शहीद होने पर चिंतित रहती।”
जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ तब शहीद भगत सिंह मात्र 13 वर्ष के थे। 1929 में असेंबली में बम फोड़ा और अंग्रेजों की अनीति व न्याय के विरोध में ‘इंकलाब जिंदाबाद’ ‘साम्राज्यवाद का नाश हो’ ‘कौमी एकता जिंदाबाद’ के नारे लगाकर सोए राष्ट्र को जगाने का काम बड़ी ही बहादुरी के साथ किया था। उस वक्त यह पुण्य कार्य करना कोई मामूली बात नहीं थी। उन्होंने अपने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर आजादी हेतु”नौजवान भारत सभा” की स्थापना की थी। वे एक उच्च कोटि के लेखक और शायर भी थे। उनकी लेखनी को पढ़ने वालों में आजादी का जोश और जज्बा स्वत: पैदा हो जाता था।
*सुखदेव पंजाब के लुधियाना जिले की नौघरा गांव में रहने वाले जो उनके पिता की इकलौती संतान थे। बचपन से बहुत ही आज्ञाकारी एवं होनहार थे। जब वे दसवीं पढ़ रहे थे तब गांधी जी अफ्रीका से भारत आए थे। उनमें छोटी अवस्था में भी बड़ों जैसी सोच समज एवं गुणी थे। कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में दिखते हैं। सुखदेव ने चरितार्थ कर दिखाया।
*राजगुरु- किसी ने क्या खूब लिखा है कि -“वह जिंदगी ही क्या जो अपने लिए जी जाये, जिंदगी तो वह खूबसूरत है जो दूसरों के हित पर न्योछावर की जाए।”
“गर हौसले बुलंद हो तो मंजिलें दूर नहीं।”
महाराष्ट्र के पुणे जिले के छोटे से गांव खेड़ा में राजगुरु पैदा हुए थे। शिवराम हरी के पुत्र राजगुरु में जन्मजात राष्ट्रभक्ति के गुण विद्यमान थे शुरुआत में उनका मिलना क्रांतिकारी एवं प्रताप अखबार के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलना हुआ।वे उनसे बहुत ही प्रभावित थे।इसके बाद वे भगत सिंह से मिले थे और मरते दम तक अनन्य साथी रहे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज थे। देश की आजादी के लिए वे तन-मन से क्रांतिकारियों के दल के साथ जुड़कर एकाकार हो गए थे।
*चंद्रशेखर आजाद-
मध्य प्रदेश की रियासत अलीराजपुर के भंवरा गांव के पंडित सीताराम तिवारी के घर 23 जुलाई 1906 में पैदा हुए थे। उनकी माता का नाम जगरानी देवी था। बचपन से ही होनहार सुंदर सुशील एवं सभ्य थे। जैसा नाम वैसा रुप और वैसा ही कार्य था। उनमें कुशल नेतृत्व का गुण था तो दूर दृष्टि भी। उनमें वीरता और बहादुरी कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की स्थापना की थी जिसे बाद में ‘सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के रूप में अपने संगठन का नाम दिया था।
इस प्रकार क्रांतिकारियों ने गुरुर अंग्रेजों की परवाह न कर अपने को भारत माता के नाम समर्पित कर दिया था। हंसते हंसते-हंसते गाते -‘मेरा रंग दे बसंती चोला’और फांसी के फंदे को चुम लिया था।आज भी इन क्रांतिकारियों का स्मरण देश में युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत एवं ऊर्जा का संचार कर देता है। तीनों साथी भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा हुई थी। इन शहीदों ने भरी जवानी में अपनी भारत माता के लिए हंसते-हंसते शीश चढ़ाया था तब भारत माता भी सोच में पड़ गई होगी। जिन सपूतों ने हंस कर दिया अपना बलिदान ।
भारत माता भी इन सपूतों को गले लगा-लगा कर रोई होगी। रास्ते में क्रूर अंग्रेज सत्ता एवं देश में क्रूर अंग्रेज सत्ता एवं पूंजीवादी ताकतों तथा जमींदारों के शोषण को कुचलने के लिए अनेकक्रांतिकारियों ने अपने सिर पर केसरिया बाना पहन कर जान की बाजी लगा दी किंतु इन प्रमुख क्रांतिकारीयों, शहीदों की गौरव-गाथा को देश की जनता के जहन से कोई अलग नहीं कर सकता है।जिन्होंने भारत माता का कर्ज चुका दिया किंतु देश की जनता उन्हें बारंबार वंदन कर भी नहीं चुका सकती।
मैं आशा ही नहीं बल्कि विश्वास करता हूं कि डॉ. अग्निदेव ने यह पुस्तक लिखकर पुनीत कार्य किया है। जो आने वाली पीढ़ियों को मार्ग प्रशस्त करेगी। मैं उन्हें तहे दिल से धन्यवाद देता हूं और साथ ही आभार प्रकट करता हूं कि उन्होंने देश के यज्ञ में अपनी पुनीत लेखनी के माध्यम से आहुति का कार्य किया है। ऐसा मेरा मानना है।
समीक्षक — डॉ.कान्ति लाल यादव