गीतिका
दें मिला हाथ में हाथ पास हम आ जाएँ।
जो दें सबका हम साथ पास हम आ जाएँ।।
ये आदर्शों के ढोल दूर के लगें भले,
जन-जन हो आज सनाथ पास हम आ जाएँ
मुखपोथी के चित्रों में यों भरमाना क्या,
मुख हो आँखों के साथ पास हम आ जाएँ।
उर की कमान से चलें नित्य विष बुझे बाण,
यदि झुके चरण में माथ पास हम आ जाएँ।
सबको चलना है ‘शुभम’ अकेले जीवन में,
हो सुगम सुभीता पाथ पास हम आ जाएँ।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’