इतिहास

माँ सारदा देवी

रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक सहधर्मिणी सारदा देवी का जन्म 22 दिसंबर 1853 को एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रामचंद्र मुखोपाध्याय तथा माता का नाम श्यामा सुंदरी देवी था।  सारदा देवी को स्कूली शिक्षा नहीं मिली,पर आगे चल कर बांग्ला भाषा का अक्षर ज्ञान मिला। मात्र पाँच वर्ष की उम्र में दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुरोहित रामकृष्ण के साथ उनकी शादी हुई,उस वक्त रामकृष्ण की उम्र तेईस साल थी।
 शादी के बाद वर्षों तक सारदा देवी अपनी पैतृक गाँव जयरामवाटी में रही।
18 साल की उम्र में सारदा देवी अपने पति से मिलने दक्षिणेश्वर पहुंची। उस वक्त रामकृष्ण का आध्यात्मिक जीवन की पराकाष्ठा शुरू हो चुकी थी। दोनों का वैवाहिक जीवन अलौकिक था। शुद्ध और ब्रह्मचर्य का जीवन बिताते हुए रामकृष्ण परमहंस ने सारदा देवी को अपनी प्रथम शिष्या बनाया।  मा सारदा देवी का आविर्भाव एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। दो बहनें और पांच भाइयों में वह सबसे बड़ी थी। एक सामान्य परिवार में आविर्भाव हुआ, मात्र पाँच साल की उम्र में शादी हुई, पति से दीक्षा ली, ब्रह्मचर्य और सात्त्विक जीवन जीकर रामकृष्ण परमहंस के आदर्शों को जीवन का लक्ष्य बनाया, जन -जन की माँ बनी। जिन्हें खुद रामकृष्ण परमहंस ने मातृ रूप में पूजा की,ऐसी ही असाधारण अवतार थी माँ सारदा देवी।
1886 को रामकृष्ण परमहंस का तिरोधान हो जाता है,उस वक्त माँ सारदा देवी तेंतीस साल की थी। अपनी तपस्या और लोकमंगल भावना के बल पर रामकृष्ण मठ की माँ बनी। हम उनके जिस बहु व्यव्हृत तस्वीर को देखते हैं उसे किसी भक्त ने तब खींचा जब वह पैंतालीस साल की थी।  स्वामी विवेकानंद ने उन्हें साक्षात दुर्गा रूप में पूजा की है।  20 जुलाई 1920 को कोलकाता के बाग बाज़ार में माँ सारदा देवी का तिरोधान हो गया।
 माँ सारदा देवी का आध्यात्मिक ज्ञान बहुत उच्च कोटि का था। बहुत पढ़ी लिखी नहीं थीं,कोई किताब नहीं लिखी है; परन्तु उनके उपदेश बहुत ही सुन्दर, मानविक और प्रेरक हैं। सारदा वाणी उनके कहे प्रवचन हैं जिन्हें रिकॉर्ड किया गया है। स्वामी निखिलानाद और स्वामी तपस्यानंद ने उनके उपदेशों को रिकॉर्ड कर महान कार्य किए हैं।
1886 में रामकृष्ण परमहंस के तिरोधान के बाद सारदा देवी कामारपुकुर में रहने लगी ,बाद में स्वामी सारदानंद ने उनके रहने के लिए कोलकाता में उद्बोधन भवन बनाया।
अपने भक्तों एवम शिष्यों के बीच सारदा देवी संघ माता के रूप में सबों का मार्गदर्शन करती रही।  रामकृष्ण परमहंस ने जीवितावस्था में सारदा देवी की मातृ रूप में पूजा की थी।
माँ सारदा देवी के मात्र तीन वाणी जोड़ रहा हूँ। पाठक पाठिकाओं से विनम्र निवेदन है कि माँ सारदा देवी पर लिखी किताबें जरूर पढ़ें।
1. मैं तुम्हें एक बात बताती हूं,अगर तुम्हें मन की शांति चाहिए तो दूसरों के दोष मत देखो।अपने दोष देखो।सबको अपना समझो।मेरे बच्चे कोई पराया नहीं है।पूरी दुनिया तुम्हारी अपनी है।
2.चित्त ही सबकुछ है।मन को ही पवित्रता और अपवित्रता का आभास होता है।एक मनुष्य को पहले अपने मन को ही दोषी बनाना पड़ता है ताकि वह दूसरे मनुष्य के दोष देख सके।
3. मैं भले की भी माँ हूं,बुरे की भी। मेरी ममता मेरा प्यार दोनों के लिए है। मैं माँ हूँ न।
आलेख
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]