करते क्या और जाने क्या हो जाता है,
क्यों मौहार के छत्ते से हाथ लगाता है ।
पशु जाग्रत हो जाये, जिनके अन्दर-
लाठी मारो, जब भी सींग हिलाता है ।
“सत्य मेव जयते” की बात पुरानी है-
आजकल तो झूँठ ही शोर मचाता है ।
आन्दोलन के पीछे शायद है कुछ और
क्यों आखिर यह खत्म नहीं हो पाता है ।
हम लोभ की कठपुतली हैं ये जानें वो-
मदारी जो भी आता, हमको नचाता है ।
कल संस्कार-शातिर की हुई लड़ाई में-
वो जीत गया जिसका गुंडों से नाता है ।
अपनी से अहंकार, ईर्ष्या उसकी से-
कहाँ सफलताएँ अब कौन पचाता है ।
-प्रमोद गुप्त