कविता

चांद और प्रेयसी

व्योम के एक छोर से दूसरे छोर तक,
धवल वस्त्र धारण किए,
मुखमंडल पर उजास लिए,
विचर रहा है तारों के साथ,
शुक्ल पक्ष का तन्हा चांद।
विरह वेदना से आहत,
अनेक रेशमी स्मृतियों को समेटे,
विचर रही है छत की मुंडेर पर,
एक हताश,उदास तन्हा प्रेयसी।
नील गगन का दूधिया चांद,
भीड़ में लेकिन तन्हा चांद।
प्रिय की याद में आकुल,
तन्हाई से व्याकुल प्रेयसी,
 संभवत: बांट रहे हैं,,,,,
एक दूसरे के अकेलेपन को।
— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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