लघुकथा

पुत्रमोह

गिरीश बाबू अपनी बेटी-दामाद के घर पूणे घुमने आए थे वहीं अचानक उनको दिल का दौरा पड़ गया अनु और सतीश दोनों काफी घबरा गए जल्दी जल्दी उन्हें अस्पताल में दाखिला किया। वही पर उनकी बाईपास सर्जरी करवाई।अनु ने अपने भाईयों को खबर भिजवाई मगर दोनों में से कोई नहीं आया कहने लगे “छुट्टी नहीं है”।
सतीश को अनु के भाईयों का व्यवहार बड़ा अजीब लगा लेकिन कर क्या सकते ।उन दोनों ने गिरीश बाबू बड़ी सेवा करी। जल्द ही वो भले चंगे हो गए, मगर उनके दोनों बेटों में कोई भी उनका हालचाल पूछने नहीं आया अलबत्ता उन्होंने पैसे जरुर भेज दिए थे। गिरीश बाबू जब भले-चंगे हो गए तब उनका छोटा बेटा उन्हें लेने आया ।गिरीश बाबू  बेटे को देखते ही एकदम बदल -से गए सभी से अपने बेटे की तारीफ करने लगे और कहने  लगे “अगर अमन पैसे नहीं भेजता तो मैं ठीक ही नहीं होता,अमन की वज़ह से मेरी जिंदगी बच गई।”
अवाक से अनु और सतीश दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
—  विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P