लघुकथा : नीम तले
“कैसे हैं तुम्हारे बाबूजी?” माँ की उद्विग्नता साफ झलक रही थी आवाज में।
माँ! डॉक्टर ने संभाल लिया है। अब धीरे -धीरे सांस ले रहे हैं। कई तरह की जाँच के बाद डॉक्टर ने दवाई लिखी है।”
“गाँव में तुम्हारे पिता बिल्कुल ठीक थे!”
“मम्मी! मुझे मालूम नहीं था कि इस बार भी दिवाली में इतना अधिक वायु प्रदूषण होगा। लोगों ने न्यायालय और सरकार के आदेश को ठेंगा दिखा दिया।”
” वे दिल्ली में स्वस्थ नहीं रह पाएंगे,बेटा। अस्पताल से छुट्टी मिलते ही हम वापस गाँव जायेंगे।”
“जी मम्मी, देखता हूँ।” दीपक बाबू ने मोबाइल ऑफ किया।
दीपक के कानों में पिताजी की अस्पष्ट आवाज गूँज रही थी, “मुझे नीम तले ले चलो। सीने में बहुत दर्द हो रहा है।”
बाबूजी गाँव के घर के सामने खड़े नीम के पेड़ की बात कर रहे थे।
— निर्मल कुमार डे