सामाजिक

शादी में फिजूलखर्ची

भारतीय परिवेश के सोलह संस्कारों में से एक, शादी-ब्याह मानव समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई परिवार का मूल है, जिसे सामाजिक एवं धार्मिक मान्यता दोनों प्राप्त है। इसका मुख्य पहलू सगे-संबंधियों द्वारा विवाहित जोड़े को ढेरों शुभकामनाएँ एवं मंगल कामनाओं से नवाजना है ताकि उनकी भावी जिंदगी सुखमय हो। वर्तमान में यह पहलू दरकिनार होता जा रहा है।

कोरोना की त्रासदी कुछ हद तक थमने से, मेहमानों की अधिकतम सीमा में छूट मिलने से थमी हुई शादियों में शहनाईयों की मधुर धुन पुनः गूँजने लगी है। साथ में धूम-धड़ाके, गाजे-बाजे, डीजे, सड़क पर नाचते यातायात को बाधित करते बारातियों के साथ शादियाँ शुरू हो गई हैं, जिसकी जैसी पसंद।

वैवाहिक उत्सव में नैसर्गिक खुशियों का स्थान कृत्रिम दिखावों ने ले ली है। जिससे वैवाहिक उत्सवों का खर्च उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है। शास्त्रों की भी दुहाई दी जाती है, “सैकड़ों हाथों से कमाओ और हजारों हाथों से खर्च करो। लादकर दूसरी दुनिया में कुछ ले नहीं जाना है। बच्चों की शादी पर तामझाम नहीं करेंगे तो कब करेंगे? युवा बच्चों को भी सब डिज़ाइनर ही चाहिए होता है। भई! फेसबुक पर तस्वीरें भी तो डालनी हैं। हहहहह!”

माँ-बाप, दूल्हा-दुल्हन सभी को लगता है कि विवाह एक ही बार होना है, कुछ ऐसा करें कि एक खूबसूरत यादगार बन कर रह जाए। बजट गड़बड़ाये तो प्राइवेट, वित्तीय संस्थाओं और बैंक के कर्ज लेने से नहीं चूकते। एक धमाकेदार शादी, जिसकी चर्चा शहर में हो, न्यूज़ हैडलाइन बने, तब जाकर खास वर्ग को दिली ठंडक मिलती है। चर्चे होते हैं दिनों-महीनों तक, मैन्यू में व्यंजन के जाने कितने प्रकार थे, ड्रिंक की वैरायटी तो गिनी नहीं जा रही थी, साज सज्जा और अन्य खर्चे-कमाल!

पर हर किसी की कूबत एक जैसी नहीं होती। भारी खर्च वहन करने योग्य धनाढ्य, जिनका दायरा भी बड़ा होता है, समारोहों में लाखों-करोड़ों उड़ा दिया, कोई नहीं। पैसा पुनः बाजार में ही गया, जिससे कई घर चलते हैं। पर मध्यवर्ग उनकी नकल में कर्जे में डूब जाए, गलत है।

 समाज में विशिष्ट पहचान रखने वाला वर्ग  शादी-ब्याह को दो दिलों एवं दो परिवारों को आत्मीयता के सेतू से जोड़ने वाला नितांत निजी समारोह मानता है। बाजारवाद हमें बेतहाशा खर्च करने को प्रेरित करता है, पर  आवश्यक-अनावश्यक खर्चे तय करना, बजट और खर्चों में सही संतुलन स्थापित करना इंसान की परिपक्वता एवं दूरअंदेशी पर निर्भर करता है।

— नीना सिन्हा

नीना सिन्हा

जन्मतिथि : 29 अप्रैल जन्मस्थान : पटना, बिहार शिक्षा- पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। साहित्य संबंधित-पिछले दो वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, सोच-विचार पत्रिका, विश्व गाथा पत्रिका- गुजरात, पुरवाई-यूके , प्रणाम पर्यटन, साहित्यांजलि प्रभा- प्रयागराज, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस-मथुरा, सुरभि सलोनी- मुंबई, अरण्य वाणी-पलामू,झारखंड, ,आलोक पर्व, सच की दस्तक, प्रखर गूँज साहित्य नामा, संगिनी- गुजरात, समयानुकूल-उत्तर प्रदेश, शबरी - तमिलनाडु, भाग्य दर्पण- लखीमपुर खीरी, मुस्कान पत्रिका- मुंबई, पंखुरी- उत्तराखंड, नव साहित्य त्रिवेणी- कोलकाता, हिंदी अब्राड, हम हिंदुस्तानी-यूएसए, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ, साहित्य सांदीपनि- उज्जैन ,इत्यादि। वर्तमान पता: श्री अशोक कुमार, ई-3/101, अक्षरा स्विस कोर्ट 105-106, नबलिया पारा रोड बारिशा, कोलकाता - 700008 पश्चिम बंगाल ई-मेल : [email protected] व्हाट्सएप नंबर : 6290273367