खट्ठा-मीठा : अनाम आत्म-बलिदानी
किसान आन्दोलन के नेताओं को रंज है कि एक वर्ष से भी अधिक चले इस आन्दोलन में 700 किसानों का बलिदान हो गया, पर सरकार ने उनकी कोई सुध नहीं ली।
मैं उन नेताओं की बात पर अविश्वास नहीं करता। हालांकि वे 700 तो क्या 7 किसानों के नाम भी नहीं बता पाये, जो वहाँ बलिदान हुए हैं। लेकिन मैं यह मान लेता हूँ कि वहाँ वास्तव में 700 का ही बलिदान हुआ होगा। वैसे यह संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि नेताओं ने इनमें उन लोगों को नहीं गिना होगा, जिनको बलात्कार करके, हत्या करके या शरीर के अंग काटकर मारा गया होगा या आत्महत्या करने को मजबूर किया गया होगा। उनका मामला अलग है।
कई लोगों का कहना है कि इन 700 में वे बकरे और मुर्गे भी शामिल हैं, जिनकी कुरबानी बेचारे गरीब किसानों का पेट भरने के लिए दी गयी थी। उनका कोई नाम नहीं होता, इसलिए बेचारे किसान नेता नाम नहीं बता पा रहे हैं।
पर मैं लोगों की इस बात को सही नहीं मानता। मैं तो यह मानता हूँ कि वास्तव में 700 किसान ही बलिदान हुए होंगे और उनके नाम किसी को ज्ञात नहीं होंगे। उन्होंने अपने नाम किसी को बताये भी नहीं होंगे, क्योंकि वे आदर्श बलिदानी की तरह बिना अपना नाम बताये ही बलिदान हो जाना चाहते होंगे, ताकि कोई उनका शोक न मनाये और उनके नाम पर गीत न गाये।
लेकिन यह प्रश्न फिर भी शेष रह जाता है कि फाइव स्टार टेंटों में रहते हुए, एयरकंडीशनरों के सामने आराम फरमाते हुए, काजू-बादाम आदि मेवायुक्त भोजन करते हुए और मशीनों से पैरों की मालिश कराते हुए वे लोग बलिदानावस्था को कैसे प्राप्त हो गये? मैं नहीं मानता कि उन मालिश की मशीनों में कोई खराबी रही होगी, जो मालिश करते हुए उनके प्राणों को खींच लेती होगी।
दूसरा प्रश्न यह भी है कि उन आत्म बलिदानी लोगों के शव कहाँ गये, उनका अन्तिम संस्कार कहाँ और कैसे किया गया और किसने किया? यदि किसी का अन्तिम संस्कार नहीं हुआ, तो यह मानना पडेगा कि वे सभी आत्म बलिदानी बहुत बड़े योगी थे, जो कबीर दास की तरह अपनी आत्मा के साथ साथ शरीर को भी गायब कर गये।
खैर, इन प्रश्नों के उत्तर मिलें या न मिलें, हालांकि उत्तर मिलने की सम्भावना बिल्कुल नहीं है, मैं उन महान् आत्म बलिदानियों को प्रणाम करता हूँ और उसी स्थान पर उनका भव्य स्मारक बनाये जाने की माँग करता हूँ, जहाँ वे बलिदान हुए हैं।
— बीजू ब्रजवासी
मार्गशीर्ष कृ 14, सं. 2078 वि (3 दिसम्बर 2021)