लम्हे बुलाते हैं
बीते हुए लम्हे
आखिर याद आ ही जाते हैं,
सिर्फ़ याद ही नहीं आते
खूब गुदगुदाते भी हैं,
कभी खुशी से तो कभी ग़म से
आँखें नम कर जाते हैं,
कभी हँसने को मजबूर करते
तो कभी रोने को विवश करते।
बचपन की यादें हो या स्कूल की बातें।
घर परिवार, ननिहाल के किस्से हों या
शरारतों पर पिटने के नजारे
दादी की गोद हो या बाबा के काँधे।
छुटकी को चिढ़ाना हो
या दीदी की नसीहतें।
मम्मी का लाड़ हो या पापा का खौफ
भैय्या के संग खेलना, झगड़ना
या साथ साथ स्कूल जाना
प्रिंसिपल के डर का भूत हो
या क्लास टीचर का हाजिरी लगाना।
परीक्षा परिणामों पर
पापा की शाबाशी हो या
बाबा, नाना संग मेले में जाना
चाचा का साथ हो
या चाची संग हुड़दंग मचाना।
और जाने क्या क्या
जो बीत गया जमाना
बहुत याद आते हैं,
शायद बीते दिनों में ले जाने के लिए
वो लम्हे हमें बुलाते हैं,
तभी तो बीते हुए लम्हे
बार बार याद आते हैं
यादों के सहारे बीते हुए लम्हे
हमें अक्सर उकसाते हैं,
यादों की दुहाई देकर
वो लम्हे हमें बुलाते हैं
अपने साथ ले जाने के लिए
बीते हुए लम्हे बार बार याद आते हैं
लम्हे हमें बुलाते है।