गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पलट के उस ने दोबारा देखा है।
सूखे तिनकों में शरारा देखा है।
सुबह ने लहरों को चूमा इस तरह,
ख़ूबसूरत इक नज़ारा देखा है।
ज़िंदगी भी क्या ग़ज़ब का खेल है,
कोई जीता कोई हारा देखा है।
शादमानी का घमण्ड अच्छा नहीं,
चमक कर टूटा सितारा देखा है।
झड़ गए जब फूल ख़ुशबू छोड़ गई,
चमन का मौसम बेचारा देखा है।
खेलता था जो कभी बिजली के संग,
दूर इक बादल आवारा देखा है।
‘बालम’ किस खेत की तू मूली है,
यह जहाँ तो तुम से प्यारा देखा है।
— बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409