शासकीय परियोजना- आक्रोशित हाथियों को काबू करने मधुमक्खियां भारी
भारत सदियों से प्राकृतिक खजाने,धरोहर, संस्कृति प्राकृतिक संसाधनों, जैविक विविधताओं का अभूतपूर्व भंडार, आध्यात्मिक विश्वास भाव, जीवो जंतुओं का अभूतपूर्व स्थल रहा है। जहां जीव जंतुओं के प्रति अभूतपूर्व संवेदनशीलता कुछ अपवादों को छोड़कर,हरनागरिक में कूट-कूट कर भरी है।मूक जीव जंतुओं जानवरों की सुरक्षा में शासन, अनेक संगठन संवेदनशीलता से काम कर रहे हैं तथा इनकी सुरक्षा के लिए भारतीय वन्यजीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002, भारतीय संविधान में भी जानवरों को अधिकार प्राप्त है, और भी अनेक कानून केंद्र व राज्य स्तर पर बने हुए हैं। साथियों हालांकि मूक़ जानवरों की रक्षा करना मानवीय धर्म है, परंतु अगर कोई जीव मानव जीवन की सुरक्षा में बाधित बने या कोई ऐसे जीव जो मानव जाति प्रजाति, जो दूरदराज के घने जंगलों में निवास करते हैं या उनका आना जाना है ऐसे मानव की, उन जानवरों से रक्षा करने के लिए सुरक्षात्मक संवेदनशीलता से परियोजना बनाना सरकार या उसके अधीन कार्य करने वाले किसी आयोग या एजेंसी का कर्तव्य बन जाता है। वह भी योज़ना परियोजना या रणनीतिक रोडमैप ऐसा होना चाहिए जिससे उस जानवर या जीव के जीवन को कोई नुकसान पहुंचाए बिना समस्याका समाधान हो। क्योंकि केरल के मल्लपुरम में गर्भवती हथिनी केसाथ हुई निर्मम हिंसा बर्बरता को भारतीय नागरिक अभी तक भूले नहीं हैं!! जिससे जानवर और मानव जाति दोनों के जीवन को नुकसान पहुंचाए बिना समस्या का समाधान हो सके। साथियों हम अनेक बार टीवी चैनलों पर न्यूज़ या ग्राउंड रिपोर्टिंग भी देखते हैं जो सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड किया हुआ दिखाया जाता है कि कैसे किसी माननीय कॉलोनी, बस्ती, गांव, शहर या मेट्रो सिटी में शेर, चीता, बाघ, अजगर इत्यादि जानवर आकर हड़कंप मचाते हैं और मानवीय जीवन या जानवरों की जान तक ले लेते हैं। उनको वन विभाग आकर बेहोशी की इंजेक्शन से शूट करके बेहोश कर पकड़ा जाता है। फ़िर जंगलों में छोड़ दिया जाता है। इसी तरह के एक परीक्षण में सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के अधीन खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने असम में नन्हे मधुमक्खियों का उपयोग करके हाथी-मानव संघर्ष को रोकने के लिए मधुमक्खियों का उपयोग करके हाथी-मानव संघर्ष को कम करने (आरआईएचबी) परियोजना शुरू की जिसमें पूर्ण रूप से सफ़लता से उत्साहित होकर अब इस परियोजना को असम में दोहराया जा रहा है यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि असम के घने जंगलों में वर्ष 2014 से 2019 के बीच हाथियों के हमलों के कारण 332 लोगों की मौत हो चुकी है साथियों बात अगर हम सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा दिनांक 4 दिसंबर 2021 को जारी विज्ञप्ति की करें तो, आरई-एचएबी परियोजना के तहत मानवीय बस्तियों में हाथियों के प्रवेश को अवरुद्ध करने के लिए उनके मार्ग में मधुमक्खी पालन के बक्से स्थापित करके मधुमक्खियों की बाड़ लगाई जाती है। इन बक्सों को एक तार से जोड़ा जाता है ताकि जब हाथी वहां से गुजरने का प्रयास करता है, तो एक खिंचाव या दबाव के कारण मधुमक्खियां हाथियों के झुंड की तरफ चली आती हैं और उन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं। यह परियोजना जानवरों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना ही मानव और जंगली जानवरों के बीच संघर्षों को कम करने का एक किफ़ायती तरीका है।यहवैज्ञानिक रूप से सही पाया गयाहै कि हाथी मधुमक्खियों से चिढ़ जाते हैं। उनको इस बात का भी भय होता है कि मधुमक्खियां उनकी सूंड और आंखों के अन्य संवेदनशील अंदरूनी हिस्सों में काट सकती हैं। मधुमक्खियों के सामूहिक कोलाहल से हाथी परेशान हो जाते हैं और वे वापस लौटने के लिए मजबूर हो जाते हैं। उम्मीद है कि इस परियोजना के जरिये आने वाले महीनों में हाथियों के हमलों में कमी आएगी और स्थानीय ग्रामीणों को उनके खेतों में वापस लाया जा सकेगा। अधिकारी ने कहा कि केवीआईसी द्वारा किसानों को मधुमक्खी के बक्सों का वितरण मधुमक्खी पालन के माध्यम से उनकी आय में भी इजाफा करेगा। विशेष रूप से प्रोजेक्ट आरई-एचएबी केवीआईसी के राष्ट्रीय शहद मिशन का एक उप-मिशन है। यह अभियान मधुमक्खियों की आबादी, शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम है, जबकि प्रोजेक्ट आरई-एचएबी हाथी के हमलों को रोकने के लिए मधुमक्खी के बक्से को बाड़ के रूप में उपयोग करता है।बीते समय में, सरकारें हाथियों को रोकने के लिए खाई खोदने और बाड़ लगाने के काम पर करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी हैं। साथ ही मानव जीवन के नुकसान के मुआवजे पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। ये खाइयां और कांटेदार तार की बाड़ अक्सर हाथियों के बच्चों की मौत का कारण बनती है और इस प्रकार यह उपाय इन विचारों को काफी हद तक अव्यावहारिक बना देता है। 15 मार्च 2021 को कर्नाटक के कोडागु जिले में 11 स्थानों पर प्रोजेक्ट आरई-एचएबी शुरू किया गया था। केवल 6 महीनों में ही, इस परियोजना ने हाथियों के हमलों को 70 प्रतिशत तक कम कर दिया है।भारत में हर साल हाथियों के हमले से करीब 500 लोगों की मौत हो जाती है। यह देश भर में बड़ी बिल्लियों (बाघ,तेंदुआ चीता आदि) के हमलों से होने वाली मौतों से लगभग 10 गुना अधिक है। साल 2015 से 2020 तक हाथी के हमलों में लगभग 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके उलट इस संख्या का लगभग पांचवां हिस्सा यानी करीब 500 हाथियों की भी पिछले 5 वर्षों में इंसानों की जवाबी कार्रवाई में मौत हो चुकी है। हाथियों को भगाने के लिए मोरनोई और दहिकाटा गांवों में एक सप्ताह के भीतर कुल 330 मधुमक्खी बक्से बिखरा कर रखे जाएंगे। इन गांवों के 33 किसानों और शिक्षित युवाओं को केवीआईसी द्वारा मधुमक्खियों के ये बक्से दिए गए हैं, जिनके परिवार हाथियों से प्रभावित हुए हैं। इन गांवों में साल में 9 से 10 महीने तक लगभग हर दिन हाथियों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने की खबरें आती रहती हैं। यहां पर हाथियों के हमलों का खतरा इतना गंभीर है कि पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीणों ने उनके हमले के डर से अपने खेतों में कृषि कार्य करना बंद कर दिया था। इन गांवों में धान, लीची और कटहल का प्रचुर उत्पादन होता है,जो हाथियों को काफीआकर्षित करता है।हाथियोंपर मधुमक्खियों के प्रभाव और इन क्षेत्रों में उनके व्यवहार को रिकॉर्ड करने के लिए सामरिक महत्व के बिंदुओं पर उच्च रिज़ॉल्यूशन वाले और नाइट विजन कैमरे लगाए गए हैं। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मधुमक्खियों का उपयोग करके हाथी मानव संघर्ष को कम करने की शासकीय परियोजना को पीड़ित राज्यों में दोहराना मानवीय सुरक्षा में अहम कदम है।
— किशन सनमुखदास भावनानी