लघुकथा – खानदान
मधु की आज पहली विवाह वार्षिकी थी। नहा धोकर पूजा अर्चना की ,सासू माँ को नाश्ता देने के बाद पति के कमरे में गई चाय लेकर। तीस वर्षीय पति ने प्यार से मधु को एनिवर्सरी की बधाई दी। मधु की आँखों में तैरते आँसू देख पति नीरज ने कहा, “अरे, तुम्हारी आँखों में आँसू! क्या बात है?”
मधु ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा,”पिताजी याद आ गए। आपको मालूम है कि नहीं मेरी शादी के एक साल पहले पिताजी की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। आज पिताजी जीवित होते तो कितने खुश होते। पिताजी ने एकबार मम्मी के साथ बातचीत के क्रम में आपकी खूब तारीफ की थी।”
“अच्छा? क्यों तारीफ की थी ?” नीरज की उत्सुकता बढ़ गई।
“बाबूजी हटिया जाने के लिए बस में चढ़े,कोई खाली सीट नहीं मिलने पर खड़े खड़े ही जाने का निश्चय किया। कमजोर शरीर और उम्र की भार !लाचारी थी, हटिया जाने की दूसरी बस भी दो घंटे बाद ही थी।”
नीरज की यादें हरी हो गई, “अरे,बाबूजी को देख मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपनी सीट उन्हें दे दी और खुद खड़ा ही सफर किया। बाबूजी पहले राजी नहीं हुए फिर मेरे कहने पर राजी हुए। लेकिन यह बात तुम्हें कैसे मालूम हुई?”
“पिताजी शाम को हटिया से वापस आए तो माँ को सारी बात बताई। पिताजी ने कहा था, “कितना संस्कारी लड़का है, शिक्षित भी।यह भी बताया था कि सुधा दीदी के पति का चचेरा भाई है और कॉलेज में पढ़ता है।”
“हाँ मधु, उन दिनों मैं भागलपुर कॉलेज में पढ़ता था। सही में, आज बाबूजी जीवित रहते तो बहुत खुश होते मुझे अपना दामाद के रूप में पाकर।”
“पिताजी मरने के पहले मम्मी को कहा था मधु की शादी किसी अच्छे कुल खानदान में करना, लड़के की भी चाल चलन जरूर देख लेना।” पिताजी की इच्छा पूरी हो गई।
“मधु,माँ बाप का आशीर्वाद और मार्गदर्शन बहुत महत्त्व रखते हैं। माँ बाप के यश का लाभ भी संतान को मिलता है। मेरी माँ ने भी तुम्हारे खानदान और माता पिता के यश को देखकर ही तुमसे मेरा रिश्ता मंजूर किया है।”
जी,मेरी सासू माँ भले ही कड़े स्वभाव की है लेकिन दया की मूर्ति है। मेरी शादी में उनका सबसे बड़ा हाथ है।”
मधु की बातों से नीरज को बहुत खुशी हुई।
— निर्मल कुमार दे