यात्रा वृत्तान्त

मेरी जापान यात्रा – 3

सुबह जब होटल में नाश्ते के बाद रिसेप्शन पर भ्रमण आदि के लिए पूछने गए तो हलकी रिमझिम हो रही थी।  वहां खड़ी स्त्री उस होटल की मालकिन थी।  उसने हमसे पूछा कि क्या हमारा कोई प्लान है। हम इस विषय में अनभिज्ञ थे।  अतः उसी ने हमें सनराइज टूर के अंग्रेजी वाले कोच ट्रिप में जगह दिला दी।  साथ ही दो छतरियां भी दे दीं और बताया कि अगले आधे घंटे तक बारिश जारी रहेगी।  उसके बाद मौसम सारा दिन साफ़ रहेगा।  मौसम की इतनी सटीक अग्रिम जानकारी विस्मयकारी थी।

         पिक अप  पॉइंट पर हम दोनों अकेले खड़े थे। ठीक आठ बजकर दस मिनेट पर एक सुन्दर सी लड़की शुद्ध अंग्रेजी में हमे लिवाने आ गयी।  नाम पता अदि लिखकर पहले से ही ले आई थी।  पासपोर्ट चेक किया और कोच में अगली सीट पर बैठाया।  बस चारों तरफ से कांच की खिड़कियों वाली थी ताकि  आपको सबकुछ आराम से दिखे।  ठीक पांच मिनट में बस अगले गंतव्य की ओर चल पडी।  समय की पाबंदी की मिसाल नहीं थी यूं हम लोग भी पिछले चार दशक से इंग्लैंड में रह रहे थे।
           हमारी टूर गाइड दर्शनीय स्थलों की जानकारी देने के साथ साथ जापानी संस्कृति का ज्ञान भी देती जाती थी और जापानी रीति -रिवाज़ों का अंग्रेजी से मिलान भी करती थी जो बहुत मनोरंजक भाषा में होता था।  सभी लोग भरपूर हँसते और बीच बीच में प्रोत्साहन के लिए ताली भी बजाते उसके लिए।  परन्तु उसको भारत की संस्कृति का ज्ञान नहीं था जो बात हर क्षण मुझे चश्मा उतारकर घूरती थी।  बस की  पिछली  सीटों पर एक जत्था  भारतीय युवकों का भी था जो हमारी तरह पहली बार आये थे।  यह हौंडा कंपनी  के नौसिखिये  इंजीनियर  थे।  जोर जोर  से     ” फूलदार  ” भाषा में संवाद करते थे।  मस्ती छाई हुई थी उनपर।
           गाइड ने कहा कि  जापान में रूढ़ संख्याएं पवित्र मानी  जाती हैं।  जैसे ग्यारह ,तेरह ,सात आदि।  मगर अब अमेरिका के प्रभाव से तेरह का अंक अशुभ करार दे दिया गया है। इसलिए ऊंची कई तल्ला इमारतों में तेरहवीं मंज़िल गायब होने लगी है।  क्या ऐसा ही कुछ तुम्हारे देश में भी नहीं है ? लगभग सभी अन्य देशों के यात्रियों ने सहमति जताई।  वह  कहती है कि  अमेरिकी लोगों ने हमारी संस्कृति बिगाड़ दी है।  जब उसकी शादी हुई थी तो उसकी दादी ने तेरह सौ येन उपहार में दिए थे। मैं मुस्कुरा देती हूँ और बताती हूँ कि सात, ग्यारह, तेरह,  आदि  संख्याएँ  भारत में भी  शुभ मानी जाती हैं और उपहार स्वरूप  दी जाती हैं।  उसे यह सुनकर आश्चर्य होता है।  फिर कहती है कि पहले कपडे की,  डोरी खींचनेवाली थैलियां सिली जातीं थीं जिनपर हंसों का जोड़ा काढ़ा जाता था या चित्रित किया जाता था उपहार की रकम रखने के लिए।  मैं भी उसे बताती हूँ कि भारत में लाल सुनहरी थैलिया प्रचलित हैं।  वह  कागज़ के नए तरह के लिफाफे  दिखाती है  और कहती है कि अब तो बस यही चलते हैं पाश्चात्य देशों के कार्डों की तरह।  मेरी खिलखिलाकर हंसी फूट  पडी।  मैंने कहा मानो या न मानो भारत में भी यही होने लगा है  .और सो और लिफ़ाफ़े नोटों के नाप के बनने लगे हैं। वह भी खूब हंसती है मेरी बात पर।
            मैं मौके का फायदा उठाती हूँ और उसको बताती हूँ कि रूढ़ संख्याएं क्यों अधिक माहात्म्य रखती हैं।  वह आश्चर्य से सुनती है। मैंने बताया कि रूढ़ संख्याएं अविभाज्य होती हैं और जो अविभाज्य है वह अनंत है।  इनफिनिटी तो तुम समझती ही हो।  अनंतता का पर्याय भगवान् है।  केवल भगवान् और उसकी सृष्टि अनंत है।  इसलिए रूढ़ संख्याएं पवित्र मानी जाती हैं।  उसकी आँखें फ़ैल जाती है और वह पूछती है ” तुम्हारा धर्म क्या है ? ”
” हिन्दू ! ”
” जापान में हम अधिकांतः बौद्ध धर्म  को मानते हैं  और मुझे पता है कि बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म का ही समझो प्रोटोस्टेंट स्वरूप है।  जापानियों को यह चीन से मिला।  मुझको अपना धर्म जड़ से पढ़ना पड़ेगा।  ”
इसके बाद दिल्लीवाले लड़के एकदम सीधे हो जाते हैं और जापानी लड़कियों के सपाट वक्षों पर फब्तियां कसना बंद कर देते हैं।  देखने में वह सब विविध प्रांतों के लग रहे थे मगर भाषा से सब ठेठ दिल्लीवाल हो गए थे।
क्रमशः

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]