सुबह जब होटल में नाश्ते के बाद रिसेप्शन पर भ्रमण आदि के लिए पूछने गए तो हलकी रिमझिम हो रही थी। वहां खड़ी स्त्री उस होटल की मालकिन थी। उसने हमसे पूछा कि क्या हमारा कोई प्लान है। हम इस विषय में अनभिज्ञ थे। अतः उसी ने हमें सनराइज टूर के अंग्रेजी वाले कोच ट्रिप में जगह दिला दी। साथ ही दो छतरियां भी दे दीं और बताया कि अगले आधे घंटे तक बारिश जारी रहेगी। उसके बाद मौसम सारा दिन साफ़ रहेगा। मौसम की इतनी सटीक अग्रिम जानकारी विस्मयकारी थी।
पिक अप पॉइंट पर हम दोनों अकेले खड़े थे। ठीक आठ बजकर दस मिनेट पर एक सुन्दर सी लड़की शुद्ध अंग्रेजी में हमे लिवाने आ गयी। नाम पता अदि लिखकर पहले से ही ले आई थी। पासपोर्ट चेक किया और कोच में अगली सीट पर बैठाया। बस चारों तरफ से कांच की खिड़कियों वाली थी ताकि आपको सबकुछ आराम से दिखे। ठीक पांच मिनट में बस अगले गंतव्य की ओर चल पडी। समय की पाबंदी की मिसाल नहीं थी यूं हम लोग भी पिछले चार दशक से इंग्लैंड में रह रहे थे।
हमारी टूर गाइड दर्शनीय स्थलों की जानकारी देने के साथ साथ जापानी संस्कृति का ज्ञान भी देती जाती थी और जापानी रीति -रिवाज़ों का अंग्रेजी से मिलान भी करती थी जो बहुत मनोरंजक भाषा में होता था। सभी लोग भरपूर हँसते और बीच बीच में प्रोत्साहन के लिए ताली भी बजाते उसके लिए। परन्तु उसको भारत की संस्कृति का ज्ञान नहीं था जो बात हर क्षण मुझे चश्मा उतारकर घूरती थी। बस की पिछली सीटों पर एक जत्था भारतीय युवकों का भी था जो हमारी तरह पहली बार आये थे। यह हौंडा कंपनी के नौसिखिये इंजीनियर थे। जोर जोर से ” फूलदार ” भाषा में संवाद करते थे। मस्ती छाई हुई थी उनपर।
गाइड ने कहा कि जापान में रूढ़ संख्याएं पवित्र मानी जाती हैं। जैसे ग्यारह ,तेरह ,सात आदि। मगर अब अमेरिका के प्रभाव से तेरह का अंक अशुभ करार दे दिया गया है। इसलिए ऊंची कई तल्ला इमारतों में तेरहवीं मंज़िल गायब होने लगी है। क्या ऐसा ही कुछ तुम्हारे देश में भी नहीं है ? लगभग सभी अन्य देशों के यात्रियों ने सहमति जताई। वह कहती है कि अमेरिकी लोगों ने हमारी संस्कृति बिगाड़ दी है। जब उसकी शादी हुई थी तो उसकी दादी ने तेरह सौ येन उपहार में दिए थे। मैं मुस्कुरा देती हूँ और बताती हूँ कि सात, ग्यारह, तेरह, आदि संख्याएँ भारत में भी शुभ मानी जाती हैं और उपहार स्वरूप दी जाती हैं। उसे यह सुनकर आश्चर्य होता है। फिर कहती है कि पहले कपडे की, डोरी खींचनेवाली थैलियां सिली जातीं थीं जिनपर हंसों का जोड़ा काढ़ा जाता था या चित्रित किया जाता था उपहार की रकम रखने के लिए। मैं भी उसे बताती हूँ कि भारत में लाल सुनहरी थैलिया प्रचलित हैं। वह कागज़ के नए तरह के लिफाफे दिखाती है और कहती है कि अब तो बस यही चलते हैं पाश्चात्य देशों के कार्डों की तरह। मेरी खिलखिलाकर हंसी फूट पडी। मैंने कहा मानो या न मानो भारत में भी यही होने लगा है .और सो और लिफ़ाफ़े नोटों के नाप के बनने लगे हैं। वह भी खूब हंसती है मेरी बात पर।
मैं मौके का फायदा उठाती हूँ और उसको बताती हूँ कि रूढ़ संख्याएं क्यों अधिक माहात्म्य रखती हैं। वह आश्चर्य से सुनती है। मैंने बताया कि रूढ़ संख्याएं अविभाज्य होती हैं और जो अविभाज्य है वह अनंत है। इनफिनिटी तो तुम समझती ही हो। अनंतता का पर्याय भगवान् है। केवल भगवान् और उसकी सृष्टि अनंत है। इसलिए रूढ़ संख्याएं पवित्र मानी जाती हैं। उसकी आँखें फ़ैल जाती है और वह पूछती है ” तुम्हारा धर्म क्या है ? ”
” हिन्दू ! ”
” जापान में हम अधिकांतः बौद्ध धर्म को मानते हैं और मुझे पता है कि बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म का ही समझो प्रोटोस्टेंट स्वरूप है। जापानियों को यह चीन से मिला। मुझको अपना धर्म जड़ से पढ़ना पड़ेगा। ”
इसके बाद दिल्लीवाले लड़के एकदम सीधे हो जाते हैं और जापानी लड़कियों के सपाट वक्षों पर फब्तियां कसना बंद कर देते हैं। देखने में वह सब विविध प्रांतों के लग रहे थे मगर भाषा से सब ठेठ दिल्लीवाल हो गए थे।
क्रमशः