लघुकथा – इंसान का धर्म
“दो शीशी खून चाहिए एबी नेगेटिव। अपने अस्पताल में इस ग्रुप का खून नहीं है।आप लोग कहीं से भी इसकी व्यवस्था अविलंब करें।”
डॉक्टर ने बाहर आकर कहा और पुनः ओटी के अंदर चले गए।
साथ आए रिश्तेदार ने देखा मरीज की माँ और पत्नी बिल्कुल टूट चुकी हैं। थोड़ी हिम्मत बटोरकर उसने रक्त दान शिविर लगाने वाले एक एनजीओ को फोन पर घटना की सूचना दी।
“आप निश्चिंत रहें। अपने ही एनजीओ के एक लड़के का ब्लड ग्रुप एबी नेगेटिव है।”
कुछ ही मिनटों में सामने बाइक से दो युवक उतरे और खून देने के लिए आगे बढ़े।
” मैं तैयार हूँ।” एक युवक ने कहा।
रिश्तेदार ने देखा बिल्कुल स्वस्थ और हट्टा कट्टा नौजवान खून देने को तैयार है। युवक के पहनावे और भाषा से साफ प्रतीत हो गया कि उसका धर्म अलग है लेकिन खून देने के लिए उसके मन में कोई धार्मिक भेदभाव नहीं है।
“आप देर न करें। मैं कोई फरिश्ता नहीं सामान्य इंसान हूँ। एक जरूरतमंद के लिए खून देकर एक इंसान का धर्म निभा रहा हूँ।”
रिश्तेदार युवक को अस्पताल के अंदर ले गए।
— निर्मल कुमार डे
यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। यदि आपका उद्देश्य मुसलमानों की मानवता को प्रचारित करना है तो आप उसमें असफल रहे हैं। कारण कि इस्लाम में खून या शरीर का कोई अंग देना हराम है। वे केवल दूसरों का खून और शरीर के अंग ले सकते हैं। हम भी रक्तदान का एक ग्रुप चलाते हैं, पर उसमें एक भी मुसलमान नहीं है। सभी हिन्दू हैं जो मुसलमानों को भी रक्तदान करते हैं।