तनहाई
कौन कहता है कि तनहाई बुरी होती है,
सच तो ये है ये हमें खुद से जोड़ देती है।
मिला देती है ये मुझको वजूद से मेरे,
वरना पहचान मेरी मुझको छोड़ देती है।
ये हंसाती औ रुलाती है मुझे उस पल भी,
जब सभी राहतें मुझ से मुंह मोड़ लेती हैं।
ये बताती है कभी खूबियां मेरी मुझको,
और कभी खामियों से रिश्ता जोड़ देती है।
हां कभी झेलने होते हैं सितम भी इसके,
बड़ी मासूमियत से मुझ को तोड़ देती है।
ये दिखाती है मुझे आईना हकीकत का,
एक ही पल में हर गुरूर तोड़ देती है।
कौन कहता है कि तनहाई बुरी होती है,
सच तो ये है यह हमें खुद से जोड़ देती है।
— मीनेश चौहान “मीन”