स्वास्थ्य

अतिसार (या दस्त) की सरल चिकित्सा

कई बार जब हम पचने में भारी या हानिकारक वस्तुएँ अधिक मात्रा में खा लेते हैं, जिन्हें पचाना हमारी पाचन शक्ति की सीमा से बाहर होता है, तो हमारी आँतें उसका रस चूसे बिना जल्दी-जल्दी बाहर फेंकने लगती हैं। वे वस्तुएँ तरल रूप में हमारे मलाशय में एकत्र होती रहती हैं और जल्दी-जल्दी निकलती रहती हैं। इसी को हम अतिसार (डायरिया) या दस्त कहते हैं। वैसे दिन में दो बार शौच आना तो अनिवार्य एवं स्वाभाविक है, और कभी-कभी आवश्यकता होने पर तीसरी बार भी जा सकते हैं। लेकिन यदि इससे अधिक बार शौच जाना पड़ रहा है और पतला मल निकल रहा है, तो उसे दस्त ही मानना चाहिए।

दस्त होना इस बात का प्रमाण है कि हमारी पाचन प्रणाली पर बहुत अधिक बोझ डाल दिया गया है और उसे आराम की आवश्यकता है। यह बात समझ में आ जाने पर दस्त का इलाज करना सरल हो जाता है। दस्त होने पर सबसे पहले तो कुछ भी खाना पूरी तरह बन्द कर देना चाहिए। यदि हम बाहर से आँतों पर कोई बोझ नहीं डालेंगे, तो पाचन प्रणाली को आवश्यक आराम मिल जायेगा। इसलिए दस्त शुरू होते ही उपवास प्रारम्भ कर देना चाहिए।

दूसरी बात, दस्तों के कारण हमारा समस्त पाचन तंत्र अस्त-व्यस्त हो जाता है। उसे ठीक से व्यवस्थित करने के लिए पेड़ू पर मिट्टी अथवा ठंडे पानी की पट्टी रखनी चाहिए। एनीमा देने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी पट्टी दिन में दो या तीन बार रखने की जरूरत हो सकती है। शरीर में पानी की कमी न हो जाये, इसके लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहना चाहिए, भले ही कितने भी पतले दस्त क्यों न हो रहे हों। अच्छा हो यदि उबला हुआ पानी ठंडा करके पिया जाये।

ध्यान रखें कि प्रत्येक दस्त होने के 15 मिनट बाद ही पानी पीना चाहिए, इससे पहले नहीं। इसके अलावा हर घंटे पर एक गिलास पानी अवश्य पीते रहना चाहिए। दस्त में रोगी बहुत कमजोर हो जाता है। इसलिए उसे केवल आराम करना चाहिए।

दस्त पूरी तरह बन्द हो जाने पर रोगी को पहले तरल पदार्थ जैसे सब्जियों का सूप, दाल, उबली सब्जी, पतला दलिया या खिचड़ी आदि देनी चाहिए। उनके पच जाने और भूख लगने पर ही ठोस आहार देना प्रारम्भ करना चाहिए। बार-बार दस्त होना या दस्त के साथ खून आना पाचन क्रिया और मलनिष्कासन तंत्र की बड़ी खराबी का संकेत है। इसके उपचार के लिए किसी अनुभवी प्राकृतिक चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]