आजीवन
जीवन के पथ पर
यहां से वहां जा रहा हूं,
समझ नहीं आता
क्या कर रहा हूं
और क्या नहीं कर रहा हूं।
जीवन की डगमग करती
नाव में बैठकर
ज़िंदगी का सफर
तय कर रहा हूं।
कभी तूफानों का
मंजर देख रहा हूं
तो कभी बदलती
हवाओं का रुख
महसूस कर रहा हूं।
कभी शिखर पर चढ़कर
क्षितिज को ढूंढ रहा हूं,
तो कभी क्षितिज के पार जाकर
आसमा को छू रहा हूं।