चिराग
मैं कोई चिराग नहीं हूँ जो
हवा के झौंका से बुझ जाऊँगा
जिगर में मशाल जलाये हैं
तुफान से भी लड़ जाऊँगा
मैं कोई चिराग नहीं हूँ जो
अंधेरों में बैठ टिम टिमाऊँगा
जिगर में प्रकाश पुंज छिपा है
अंधेरों को चीर अलख जगाऊँगा
मैं कोई चिराग नहीं हूँ जो
डर कर सिमट रह जाऊँगा
जिगर में फौलादी गुब्बार है
जो गगन तक तहलका मचाऊँगा
मैं कोई चिराग नहीं हूँ जो
शांत सागर सा चुप हो जाऊँगा
जिगर में सुनामी उफान है
जो तट से भी टकरा जाऊँगा
मैं कोई चिराग नहीं हूँ जो
खतरों से छिप कर रह जाऊँगा
जिगर में एक अरमान है जो
जल थल में भी तुफान मचाऊँगा
मैं कोई चिराग नहीं हूँ जो
बारिस की बूंद से टूट जाऊँगा
जिगर में इतनी शान है जो
जला कर भस्म कर डालूँगा
— उदय किशोर साह