ग़ज़ल – बढ़ना खुद से कठिन डगर है
बढ़ना खुद से कठिन डगर है,
हाँ सच में आसां न सफ़र है ।
कुदरत तमलीन हुई देखो,
सब मगन किसी को न फ़िकर है ।
क्या सच हम इतने बदल गए !
कि हमें अपनी ही न खबर है ।
अब जो मिलकर सब न चले तो,
होगा फिर हर तरफ़ क़हर है ।
मिलन कहे झाँक ज़रा मन में,
जग की तेरी तरफ़ नज़र है ।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’