रंगबिरंगी चिड़ियों को दुकान में बिकते देख पत्नी ने दो चिड़िया खरीद ली । घर लेकर उनके लिए दाना पानी नियमित रूप से देना दिनचर्या में शामिल हो गया । उन चिड़ियों के नाम भी रख दिए गए ।अब ऐसा लगने लगा मानो वे घर के सदस्य हो ।जब कभी बाहर जाना हो तो उनके देख-भाल की चिंता सताती। समय बीता तो उनकी संख्या दस बारह हो गई । उन्हें सम्भालना मुश्किल सा लगने लगा । एक दिन विचार किया कि क्यों न हम इन्हे चिड़ियाघर रख आए । चिड़ियों को चिड़िया घर दे आए। जब उन्हें देकर वापस जाने लगे तो पत्नी ने उन्हें उनके दिए नाम से पुकारा तो वे अपने पंख फड़फड़ाने लगे। ऐसा लग रहा था मानो बच्चे अपनी माँ को पुकार रहे हो। आँखों में आँसू की धारा बह निकली ,मन कह रहा था कि वापस घर ले चले । तब महसूस हुआ की अपनों से दूर होने की टीस कैसी होती है। घर आए तो सूनापन। जब कई दिनों बाद संतान के रूप में लड़की हुई तो खुशियाँ छा गई। वो जब बड़ी हुई और शहर में पढने का समय आया तो ऐसा लगने लगा कि जब बच्चे पहली बार स्कूल जाते है तो माता- पिता उसे कुछ दिन तक स्कूल छोड़ने स्वयं जाते है। स्कूल गेट के अंदर जाते देखते वे रोते और माता -पिता की आँखों में आँसू आ जाते है । किन्तु ख़ुशी भी होती है कि आज से स्कूल गए किन्तु एक फिक्र भी लगी होती है। कैसे बैठी होगी स्कूल में इतनी देर तक।
फिर समय पंख लगा कर उड़ने लगता वो एक क्लास से दूसरी क्लास में पास होती जाती है।वक्त आता है कालेज जाने का अधिकांश बच्चों को बाहर शहरों में जाकर ही पड़ना पढता है और वही रहना भी। अपने मन में झांके तो बच्चो से दूर रहने का दर्द जब बच्ची पहली बार स्कूल गई और अब पहली बार कालेज जाती तब हमें यह अहसास होता कि चिड़ियों को छोड़ते समय की उठी मन में छोड़े जाने की टीस एक समान होती है।
फिर आँखो में आंसू आते है ।बच्चों को शिक्षा हेतु बाहर भेजने से दूरियां तो हर एक के साथ होती ही है लेकिन छोड़ने के वक्त टीस आँसू भरी होती है ।
— संजय वर्मा “दृष्टि”