सामाजिक

खुद पर कितना विश्वास

विश्वास कोई वस्तु नहीं अपितु एक भाव है। हर किसी के विश्वास का स्तर और आत्मविश्वास का मापदंड अलग होता है। साथ ही बहुत कुछ परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। मगर खुद पर विश्वास न हो तो परिस्थितियों के अनुकूल होने पर भी सिर्फ़ अपनी कमी से हम बहुत कुछ पाते पाते गँवा बैठते हैं।
सामान्यतया देखने में यह भी आता है कि वे लोग भी हमारा विश्वास बढ़ाने/लौटाने के लिए हमें प्रेरित करते हैं, जिनका खुद का आत्मविश्वास खुद ही कमजोर है। मगर सकारात्मक तथ्य यह है कि भले ही वे खुद पर अविश्वास करते हों, मगर हमारा खुद पर विश्वास मजबूत करने का जो प्रयास करते हैं, उसमें जरूर सफल हो जाते हैं यानी जो उनके पास ही नहीं है, वो हमें देने का प्रयास करते हैं।जरूरत है कि हम सोचते कैसा हैं सकारात्मक या नकारात्मक।
एक तथ्य यह भी है कि नकारात्मक सोच वाला कभी खुद पर विश्वास की बात सोच ही नहीं सकता। भले ही सामने वाला कितना ही प्रेरित करे, विश्वास दिलाए। वहीं सकारात्मक सोच वाला थोड़ी सी हौसला अफजाई मात्र से खुद ही स्व आत्मविश्वास से लबरेज हो जाता है।
मुझे खुद पर विश्वास था है और रहेगा ।ये मेरा खुद पर विश्वास ही था कि 20-22 वर्ष लेखन से दूर होने के बाद 2020 में पक्षाघात से उबरने के दौरान मैं पुनः साहित्य सृजन पथ पर ऐसा बढ़ा कि मुझे स्वयं अप्रत्याशित महसूस हो रहा है। मगर मुझे खुद पर विश्वास दिलाया हमारे ही जिले के वरि. कवि आ. यज्ञराम मिश्र यज्ञेश जी ने।( जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद अपनी साहित्यिक यात्रा का श्री गणेश किया था) जब मैंनें उनके एक काव्य संग्रह को किसी से लेकर पढ़ने के बाद उसकी समीक्षा लिखकर उनसे मिलने गया था। बातचीत के दौरान मैंनें अपनी वस्तु स्थित से उन्हें अवगत कराया तब उन्होंने मुझे इतना भर कहा था कि आपका लेखन बंद हुआ है मगर आपके अंदर का लेखक मरा नहीं है, सुप्तावस्था में है।देर सबेर वो जागृति होकर फिर से बाहर आयेगा ही।
…….और अंततः उनकी बात सत्य हुई और मैं पुनः 2020 में पक्षाघात के बाद लेखन की दुनियां में लौट आया।
आशय सिर्फ़ इतना भर है कि सफलता किसी भी क्षेत्र/कार्य में पाना है तो खुद पर विश्वास होना पहली शर्त है।
अब ये अपने आप पर निर्भर करता है कि हम या आप खुद पर कितना विश्वास करते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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