अविस्मरणीय पल
बात अभी से लगभग दस साल पहले की है, मार्केट में नोकिया की नई फोन कैमरे वाली आयी थी जो समय के हिसाब से काफी महंगी थी। पतिदेव अपने लिए नहीं पर मेरे लिए उन्होंने वो महंगी फोन खरीदा और मुझे गिफ्ट दी
मैं बहुत खुश थी सबको पता चल चुका था कि मेरे पास नोकिया का न्यू मॉडल फोन है।
कुछ दिन बाद हमें अपने होम टाउन बिहार जाना था। हम वहां पहुंचे अपने ससुराल जहां मेरे सास-ससुर जेठ-जेठानी और भी पूरा परिवार है।
वहां भी मेरे फोन के खूब चर्चे हुए,,, एक दिन वही से मुझे अपने कॉलेज किसी काम से जाना था तो मैं घर में बताकर कालेज चली गई अपनी एक सहेली के साथ, वो इसलिए कि मेरा मायका भी उसी शहर में है तो शुरू से अकेले आना जाना करती रही हूं खैर, जब मैं कालेज पहुंची और वहां जिन सर से मिलना था उनके साथ लाइब्रेरी में बैठकर बात हो रही थी…उस दौरान मैं अपना फोन सामने टेबल पर रख दी और कुछ समय बाद वहां से निकल पड़ी।
गेट से बाहर निकलने से पहले मुझे ध्यान आया कि अरे” मेरा फोन तो वही टेबल पर छूट गया उफ! मैं और मेरी सहेली काफी तेजी से सीढ़िया चढ़ लाइब्रेरी के कमरे में पहुंचे….टेबल देखा चारों तरफ देखी पर कहीं फोन नजर नहीं आया। तब तक सर की नजर मुझपर पर गई मैंने उन्हें बताया कि सर आपसे बात करने के दौरान मेरा फोन यही रह गया।
सर बोले देखो बबली ध्यान से कहीं और तो नहीं छोड़ दिया क्योंकि मैंने तो फोन नहीं देखा वैसे भी यहां बच्चे लगातार आते ही रहते हैं तुम चाहो तो यहां की अलमारियां चेक कर सकती हो मुझे कोई एतराज नहीं……मैंने कहा नहीं सर ऐसा नहीं।
अलमारियां मैं नहीं चेक कर सकती हां आप अपनी तरफ से एक बार देख लें, शायद कोई उठाकर रख दिया हो। मैं सर के नजदीक ही खड़ी थी सर एक दो अलमारी चेक किए और बोले यहां तो नहीं..
उदास मन से मैं नीचे उतर आई पर मैं घर नहीं जा पा रही थी , बहुत बुरा लग रहा था कि सप्ताह भर भी नहीं हुआ और मैं फोन गुम कर दी। मेरे घर वाले क्या सोंचेंगे कि मैं कितनी लापरवाह हूं, अभी साल दो साल पहले की ही तो बात है जब हम पटना से दिल्ली आ थे थे तो आधी रात ट्रेन से किसी ने मेरा पर्स चुरा लिया जिसे मैं अपने सर के नीचे रखकर सोई थी उस पर्स में मेरे सोने की अगूंठी मोबाइल पैसा जो निकलते वक्त सबने पैर छूने पर दिया था अंगूठी तो मैं उंगली से उतारकर पर्स में रख ली थी कि रात को कोई अंगूठी के चक्कर में मेरी उंगली न काट ले। दिमाग में ऐसी ही कुछ बातें चल रही थी इन्हीं सब से मैं थोड़ी देर वही रुकना चाहती थी…. तभी मेरी सहेली ने मेरे पतिदेव को अपने फोन से फोन कर सारी बात बता दी। साथ में ये भी कही कि ये कॉलेज से बाहर नहीं आ रही….
पतिदेव मुझसे बात किए और बोले आराम से घर आ जाओ…. कुछ देर बाद मैं ससुराल घर पहुच गई, आगे कमरे में ही मेरे सास-ससुर पतिदेव और जेठ बैठे हुए थे।
कमरे में घुसते और पतिदेव से नजर मिलाते ही मेरे आंसू निकल गए, पतिदेव ने सिर्फ यही कहा बेवकुफ हो क्या !
तबतक सासु मां मेरे आंसू पोछती हुई बोली अरे” एक फोन के लिए क्या रोना तुमसे बढ़कर है ! तुम ठीक हो हमारे लिए यही खुशी है फोन तो आता जाता रहेगा”
तभी ससुर जी बोल उठे बहु रोईए नहीं हम आपको वैसा ही फोन दिला देंगे…..
उफ ! जहां मैं सोच रही थी फिजूल के खर्च से बचने वाले और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले मेरे सास-ससुर जिन्होंने कभी अपने लिए एक फोन तक नहीं खरीदा न यूज किए, बस अपने बच्चों के लिए बेहतर जीवन बुनते हुए पूरी उम्र गुजार दी…तो इतनी महंगी फोन भुलाने पर कुछ न कुछ तो मुझे जरूर बोलेंगे…. लेकिन उनका ये प्यार और व्यवहार देखकर मैं खुशी से और ज्यादा रो पड़ी…..
सचमुच ! अगर ससुराल और ससुराल वाले ऐसे हो तो कोई भी लड़की के माता-पिता कभी भी बेटी विदा करने के बाद चिंतित न होंगे, बल्कि वो भी अपने नसीब पर गर्व करेंगे कि बिटिया को इतना प्यारा एक और नया घर और परिवार मिला है।