कविता

एहसासों की छुअन

सुनो !
आंखे बंद कर जब भी स्पर्श करती हूं तुम्हारे
एहसासों की छुअन को…..

ऐसा लगता है जैसे मानो !
भोर की हरियाली बूंदे, सूर्य की सुनहरी लालिमा
मचलती हवाओं की थिड़कन और
आसमान की नीली-नीली रंगते….
सब मुझमें ही समाहित हो रहे

उस वक्त मैं
प्रेम के उस शिखर पर पहुँच चुकी होती हूं जहां
मन का कोर-कोर तृप्त हो खिल उठता है

प्रेम के तासीर से महका यौवन
नई अनुभूतियों की एक-एक कंपन को
अपने आँचल में समेट लेती है और

मदहोश हुई बाबरी सी
लांघकर सीमाओं की लकीरें
खूब नाचती है पायल संग…..

सुनो !
लिखने बैठी हूं अपने इन्हीं एहसासों को पर
कलम की स्याहियां छिटकने लगी है
और शब्द-शब्द में बहने लगे हो तुम

देखो न !
कितना आसान है मेरे लिए तुम्हें पा लेना
एक सच्चे प्रेम की मौजूदगी की ही तो जरूरत होती है

फिर ये हमारे हृदय में खुद ही खुद अपना
प्रेम का ताजमहल गढ़ने लग जाता है

एक राजा और एक रानी का स्वर्ग
जहां मिलता है परवाज उनकी चाहतों को….

और फिर !
बिखर जाती प्रकृति के चारों दिशाओं में
प्रेम की सतरंगी छठा….

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]