कविता

नया सबेरा

रोज सुबह ही तो
सबेरा नया होता है,
रात बीतती ही है
सुबह होना ही है
इसमें नया क्या है?
कुछ भी तो नहीं।
नया है तो हमारा सपना
हम सबकी सोच
जो हर सुबह आता है
नई उम्मीदों संग
नया विश्वास लेकर,
नये उत्साह के साथ
नये सपने नये विचार के साथ
जगाता है हममें सफलता के
नवोदित आयाम।
जरूरत है बस इतना
कि हम बीती बातों को भूल
सिर्फ आज को निहारें
कल की बात कल थी
आज फिर से संवारें
कल अच्छा था या खराब
व्यर्थ विचार न करें
अपनी ऊर्जा का
निर्रथक ह्रास न करें,
हर रोज तो नया सबेरा है
तो हम भी कुछ नया करें,
नये सबेरा आया है तो
नव उत्साह से इसका
खुले मन से स्वागत तो करें।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921