कत्ल
ऐसे किया है कत्ल के ईमान ले गये ।
यारों वो जाते जाते मेंरी जान लें गये ।
आया न कुछ नज़र,सिवा उनकी अदाओं के,
चारो चरफ फैला हुआ , जहांन ले गये ।
देखा जो उनका ताब तो नज़रें न टीक सकी,
पल भर में छीन कर मेंरा गुमान ले गये ।
चेहरे के नूर में था मुकम्मल जहां यारों
मेरे दर-ओ- दीवार की वो शान ले गये ।
किससे कहूं ख़ुदाया ख़ैर,वो खुद ही थे सामने,
जाते हुये जमीन -ओ- आसमान ले गये ।
तौबा वो क्या मंज़र था अपनी ख़बर नहीं
मैं कौन हूं क्या हूं मेरी पहचान ले गये ।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”