कविता

/ क्या लिखूँ मैं! /

अगर मैं चलता हूँ तो
कुछ लोग हंसने लगे,
रूकता हूँ कहीं अशक्त तो
रास्ते में पत्थर फेंकने लगे
यदि मैं आवाज लेता हूँ तो
उस बोली में गलती ढूँढ़कर
मेरे साथ अपहास करने लगे
चुपके से रहता हूँ तो
बाकी लोग नादान कहने लगे।

विचारों के खंभ पर मैं
समाज का एक रूप हूँ
सत्य की खोज में चलते
दूर देश का पथिक हूँ
जानता हूँ चिंतन में तैरना
साँस लेकर निकलता हूँ बाहर
कभी – कभार बाढ़ सी आते हैं
दिल में ये मेरे अक्षर
आवेग के उमंग में बह जाना
निश्चलता की समाधि में मिलना
आम बात हो गयी हैं मेरी

अलग नहीं हूँ मैं किसीसे
अलग नहीं है जग मुझसे
काल चक्र की गति में
सबकी गति निश्चित सत्य है
निंदा – स्तुति, मान – अपमान
धर्म – दर्शन, कर्म – कार्य
भेद – विभेद सामाजिक जीवन में
मन की मर्म वस्तुएँ हैं
स्वार्थमय आवरण को पारकर
समता के तल पर देखें तो
सभी अपने ही लगते हैं।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।