मुक्तक
नशा नाश करता भवन, और जलाता खून।
बिनु इसके जी देखिए, स्वाद बढ़ाता नून।
आदत भली कभी नहीं, रुक रुक पीजै दूध-
मदिरा थी औषधि कभी, पान बिना विष चून।।-1
अब शराब में दम कहाँ, खौल रहा है खून।
दुबला पतला आदमी, पानी पीता भून।
नशा दशा से कह रही, पी मत प्यारे मूल-
गल जाएगा देख ले, जोंख मरे छू नून।।-2
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी