सन १९६६ में जॉय मुकर्जी की फिल्म लव इन टोकियो ने हमें बहुत प्रभावित किया था। फिल्म तो आम हिंदी फिल्मो की तरह एक उलझी हुई प्रेम कथा ही थी ,मगर इसके बीच में इंटरवल से पहले हिरोशिमा में हुए बम काण्ड का पूरा किस्सा अंग्रेजी की एक डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया था जो अत्यंत ह्रदय विदारक एवं डरावना था। इससे पूरी फिल्म की लम्बाई ड्योढ़ी हो गयी थी। उस काल के हिरोशिमा की सूरत एक सामान्य चाहल -पहल वाले शहर की थी। बम के बाद उसका विनष्ट स्वरूप आँखों के आगे बार- बार उभर कर आता जा रहा था। कुछ कुछ वैसे ही शहर की प्रतीक्षा थी मुझे। मगर यह तो स्वप्न नगरी निकली !
चरों ओर एकदम आधुनिक इमारतें ,बड़े बड़े अन्तर्राष्ट्रीय नाम। चौड़ी सजी हुई सड़कें , बगीचे फव्वारे , आदि आदि। लंदन फीका लग रहा था। हमने अपनी रिहायशी बुकिंग जापानी ढंग के घरों में करवाई थी क्योंकि यह सस्ते होते हैं। और इनकी सभी ने प्रशंसा की थी। हमारी मांग थी ,मुख्य बाजार पास हो ताकि अधिक न चलना पड़े। सो हम अपना नक्शा आदि देखते ढूंढते एक मकान पर पहुंचे। ब्रोशर में लिखा था ,शादीशुदा दम्पति, दो कमरे, टॉयलेट आदि। घंटी बजाई। एक झुकी कमर वाले बूढ़े ने दरवाज़ा खोला। एक ओर सीढ़ी की तरफ इशारा किया। हम ऊपर चढ़े। वः स्वयं नीचे ही रहा। पहले माले पर रुके तो वह गुर्राया ,नो नो। हाथ के इशारे से और ऊपर जाने को कहा। सीढ़ियों की चौड़ाई अब केवल डेढ़ फुट रह गयी थी। यही नहीं वह ऊंची ऊंची भी थीं। ऊपर हमारा स्वागत दो बिल्लियों ने किया। हमें देख कर वह दुबक गईं। वहीँ एक बूढी स्त्री ने हमें हमारा बिस्तर दिखाया। टॉयलेट में एक टब रखा था। साथ ही बाल्टी। गरम पानी नीचे से लाने की व्यवस्था हो जाएगी।
हम बिल्लियों की महक को सहन नहीं कर पाए। ऊपर से मछली के तेल की महक। अतः बाहर आ गए। एक व्यक्ति से पूछा तो उसने एक गली की तरफ इशारा किया हम वहां से चल दिए। गली के मोड़ पर बड़ी सड़क थी दस कदम चलने पर एक अमेरिकी नाम नज़र आ गया। सौभाग्य से उसने हमें एक कमरा दे दिया। वह भी काफी सस्ता क्योंकि उसमे बिचौलिए एजेंट की फीस नहीं थी। वाह वाह !
नगर घूमने के लिए टूर कोच ली। शहर का मध्य ही था अतः जरा सी देर में हम ” पीस मेमोरियल पार्क ” में खड़े थे। यहां एक बहुत सादगी से बनाया गया स्मारक है जो १९४५ के हताहतों की याद में बनाया गया है। सभी के नाम इस पर लिखे गए हैं। जापानी बगीचों और महत्वपूर्ण इमारतों में पानी और पुल का बहुत महत्त्व है। उसी मान्यता को ध्यान में रखकर इस स्मारक के चरों ओर पानी का तालाब है। और उसपर एक पुल बना है। निर्देशिका सब घुमाती रही। अमेरिका ने युद्ध के बाद इस जगह को सुन्दर बनाने में काफी मदद की है। टूटे फूटे मकानों का कोई पता नहीं था। केवल एक क्षत -विक्षत इमारत रहने दी गयी है उदाहरण के तौर पर। इसको ”अटॉमिक बम डोम ” कहा जाता है। चारों तरफ पक्के फर्श और स्मारक हैं। पर्यटकों के झुण्ड के झुण्ड आ जा रहे हैं। इसके आगे एक शांति वन है जहां कोई भी आकर अपना समय ध्यान आदि में बिता सकता है। इस वन में अनेक तरह के पंछी पले हैं। लोग इनको दाना खिलाते हैं। एक बूढ़ा व्यक्ति एक बेंच पर बैठा अपनी हथेली पर दाना लिए था और नन्हीं -नन्हीं गौरैयाँ उसकी हथेली पर बैठी चुग रही थीं। उसके कंधे, उसकी बाहें आदि सब जगह वह फुदक रही थीं जैसे कि वह निर्जीव हो। हमारी निर्देशिका इसी उद्यान में बने एक मंदिर पर ले आई। यह बहुत छोटा सा एक खुला पैविलियन है जिसमे एक बड़ा सा घटा लगा है ,ठीक वैसा जैसा हमारे सारनाथ के मंदिर में है। इसके पास जाने के लिए एक चबूतरा बना है। हम सब नीचे खड़े हैं। निर्देशिका उसका महत्त्व बतलाती है। फिर संभाली हुई अंग्रेजी में मेरी ओर इशारा करती है और मुझको वह घंटा बजाने का आदेश देती है। वह कहती है कि हमारे सभी सहयात्री जापान से ही हैं मगर क्योंकि मैं इंग्लैंड से ,इतनी दूर से आई हूँ मुझको उसने चुना है। मैं लगभग स्वप्नावस्था में उसके निर्देश का पालन करती हूँ और अपने पति का हाथ पकड़कर ऊपर चढ़ जाती हूँ। एक मोटे डंडे को धकेलकर उस को बजाती हूँ। गोंग की आवाज़ से सारा वन गूंजता है क्योंकि वहां इतनी शांति थी। मेरी आँखें अविरल बह रही हैं। टिश्यू से आँख नाक पोंछकर मैं सबको इस सम्मान के लिए धन्यवाद देती हूँ और बताती हूँ कि मैं महात्मा बुद्ध की नगरी सारनाथ से आई हूँ जहां ठीक ऐसा ही घंट मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगा है। सब लोग ताली बजाते हैं मैं उसी अर्द्ध जागृत अवस्था में नीचे उतरती हूँ। दो चार स्त्रियां मुझे पीठ पर शाबासी देती हैं। एक वयोवृद्ध मेरे हाथ को चूमता है। मैं महात्मा बुद्ध की चेली ,अपने सौभाग्य पर मन ही मन भगवन का धन्यवाद कहती हूँ।
इसके बाद हम वॉर म्यूजियम देखने गए। भयानक जैसा नहीं लगा ,अलबत्ता विषाद ने आ घेरा। भगवन करे कभी ऐसा न हो दुबारा।
यहां देखने के लिए हिरोशिमा कैसल भी है। मगर वह दूर है। निर्देशिका हमको एक शिंटो मठ में ले गयी जहां सब चीज़ गेरुए रंग में रंगी हुई थी। यह हनुमान मंदिर जैसा ही था कमोबेश। यहां धर्म की दीक्षा दी जाती है। यह शायद उनका गुरुकुल था। यहीं हमने असली देवदासियां देखीं जो एकदम सफेद रंग की बेहद खूबसूरत जापानी कुमारियाँ थीं। इतना रूप कहीं नहीं देखा और उनके सौम्य मुख मंडल की शांति अद्भुत थी। यहीं इसी मंदिर में एक अक्षय वैट देखा जिसके विशाल घेरेवाले तने में से नई डालियाँ फुट रही थीं। यह शायद बोनसाई का नमूना था। तने के चारों ओर दीवार से पक्का घेरा बना तह। जनता इसकी परिक्रमा कर रही थी। महाजनो येन गतः ,सा पन्थाः ।