लघुकथा

दोस्ती की मिसाल

दिनेश के पिता राजीव पिछले कई दिनों से बेटे को कुछ उदास देख रहे थे। आखिर आज पूछ ही लिया। क्या बात है बेटा, तबियत ठीक नहीं है क्या?
नहीं पापा। आपको बताया था कि पंकज के एक्सीडेंट के कारण उसकी बहन सोनी की शादी रुक गई।
मगर बेटा इसमें हम क्या कर सकते हैं?
यही तो मैं सोच नहीं पा रहा हूँ पापा! सोनी के सामने जाता हूँ तो जैसी उसकी राखियां उलाहना देती हैं कि तू कैसा भाई है, तेरा दोस्त बिस्तर में है और तू……।दिनेश रो पड़ा।
देखो बेटा। बात गंभीर है। अच्छा होता तुम मुझे ये बात और पहले बताते तो…. मगर अब तुम तीनों को परेशान होने की जरुरत नहीं है।
सोनी की शादी मैं कराऊंगा, शादी उसी लगन में ही होगी। तुम मुझे पंकज के घर ले चलो। आज ही हम सोनी की होने वाली ससुराल चलेंगे और बात करेंगे। साथ उन दोनों को यहीं ले आयेंगे, अपने साथ ही रखेंगे। वैसे भी जब उसके परिवार में कोई और नहीं है तो सोनी पंकज की देखभाल कैसे कर पाती होगी, यह भी चिंता की बात है। आखिर उसकी शादी के बाद पंकज की देखभाल वहां कौन करेगा। हमारे साथ रहेगा तो सब होता रहेगा।
मुझे भी तुम्हारी दोस्ती के सहारे कन्या दान का अवसर भी मिल जायेगा और तुम्हारी दोस्ती भी एक मिसाल बन जायेगी।
दिनेश खुशी से अपने पिता से लिपट गया। राजीव जी उसे बाहों में समेट उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे आश्वस्त कर रहे थे।

*सुधीर श्रीवास्तव

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